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Saturday, 10 September 2022

सरकारी सम्पत्ति को बेचने की जल्दी में मोदी सरकार



केंद्र की मोदी सरकार ने इस साल सरकारी सम्पत्ति (एल आई सी, बी पी सी एल आदि) का विनिवेशीकरण (विक्रय) कर 65,000 करोड़ रुपये जुटाने की योजना बनाई है। और इस काम को जल्द से जल्द पूरा करने के लिए उसने सम्बन्धित मंत्रालयों और विभागों को निर्देश जारी किये हैं।

कैबिनेट सचिव राजीव गौबा ने 12 अगस्त को एक बैठक कर बीमार और घाटे में रहने वाले पी एस यू (पब्लिक सेक्टर अंडरटेकिंग) अथवा सरकारी संस्थानों को बंद करने की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने की बात की और अगर ऐसा नहीं हो पा रहा है तो इसके क्या कारण हैं। यह बताने को कहा गया है।

दरअसल पी एस यू वे सरकारी संस्थान हैं जिनमें सरकार की हिस्सेदारी या तो 51 प्रतिशत है या फिर सरकार उनको नियंत्रित करती है। और इन संस्थानों को आज़ादी के बाद जनता के पैसे से खड़ा किया गया था। लेकिन मोदी सरकार इनको कोड़ियों के भाव बेच रही है और इसके लिए उसने विज़नइंडिया 2047 के नाम से एक नया जुमला उछाला है। 

वित्तमंत्री निर्मला सीतारमन तो भारत की जनता को बिल्कुल ही मूर्ख समझती हैं। वे कहती हैं कि हम सरकारी संस्थानों को बंद नहीं कर रहे हैं बल्कि विनिवेशीकरण कर रहे हैं ताकि उनकी पूरी क्षमता का इस्तेमाल किया जा सके और उनको पेशेवर तरीके से चलाया जा सके। यानी आजादी के बाद से सरकारी संस्थानों ने देश के विकास में जो भूमिका निभाई है वो उनकी नज़र में कुछ भी नहीं है। या उसको वो नज़रअंदाज़ कर देती हैं।

ऐसा नहीं है कि कांग्रेस सरकार निजीकरण के पक्ष में नहीं थी परन्तु भाजपा सरकार इस काम को जल्द से जल्द कर देना चाहती है। ताकि देशी-विदेशी कारपोरेटों की इच्छा को अविलम्ब पूरा किया जा सके।  

कैग की दिसंबर 2021 की रिपोर्ट के अनुसार राज्य द्वारा संचालित 181 कंपनियों को 2018-19 में जहाँ 40,835 करोड़ का घाटा हुआ था वहीं 2019-20 में 68,434 करोड़ का नुकसान हुआ है। 64 कंपनी पिछले 5 सालों से लगातार घाटे में हैं। ऐसे ही अन्य आंकड़ों के आधार पर सरकारें सार्वजनिक संस्थानों के निजीकरण को जायज ठहराती रही हैं। यह घाटा कहाँ से पैदा हुआ, सरकार ने लगातार वो नीतियां, वो माहौल बनाया जिससे सरकारी कम्पनियां घाटे में गयीं। सरकार का उद्देश्य साफ था, पहले सरकारी संस्थानों को बीमार बनाओ या बीमार घोषित कर दो फिर घाटे के संस्थान कह आसानी से बेच दो। सरकारी संस्थानों में व्याप्त भ्रष्टाचार को भी वे निजीकरण के पक्ष में इस्तेमाल करती रही हैं। 

लेकिन आज यह सच्चाई सबके सामने उजागर है कि जब भी सरकारी संस्थानों का निजीकरण किया जाता है तो वहाँ स्थायी कर्मचारियों की छंटनी कर दी जाती है। ठेके पर बहुत कम वेतन पर कर्मचारी मज़दूर रखे जाते हैं। और मुनाफा कमाने के लिए पूंजीपति को हर सुविधा प्रदान की जाती है। अब तो स्थिति यह है कि जहाँ एक तरफ सरकारी संस्थानों का निजीकरण किया जा रहा है वहीं पूंजीपति ज्यादा मुनाफा और कमाएं इसके लिए श्रम कानूनों से विहीन गुलाम मज़दूरों की व्यवस्था की जा रही है। इसमें पूंजीपति का मुनाफा बढ़ता है। और यही पूंजीवादी सरकारों द्वारा विकास है। मोदी जी इसी विकास की गाड़ी के ड्राइवर हैं।

#निजीकरण
#विनिवेशीकरण


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