Rohit Sharma पोस्ट का तात्पर्य क्या है? जमीनी काम और हवाबाजी या क्रांतिकारी लफ्फाजी को स्पष्ट करना।
तो कामरेड साथियो, काम तो हमेशा जमीन पर ही की जाती है, अगर सिर्फ लफ्फाजी या हवाबाजी करना हो तो और बात है।
क्रांतिकारी इतिहास हमें बताता है कि जहाँ 'लफ्फाज क्रांतिकारी' एक देश में समाजवाद के सिद्धांत का विरोध का माला जपते रहे थे, वही ठीक इसके उलट माओवादी एक देश के एक इलाके में लाल सत्ता कायम रह सकने की परिस्थितियों पर विचार करते रहे थे।
मार्क्सवादी सिद्धांत की भाववादी समझ के कारण 'लफ्फाज क्रांतिकारी' महज लफ्फाजी करने के सिवा एक कदम भी क्रान्ति की तरफ व्यवहार में आगे नहीं बढ़ पाए। जबकि माओवादियो ने न केवल चीन में बल्कि कई देशो में एक इलाके में लाल सत्ता स्थापित होने और कायम रहने की भौतिक परिस्थितियों का विश्लेष्ण किया और लाल सत्ता की स्थापना भी की।
उस लाल सत्ता का महत्व इससे कम नहीं होता की उन परिस्थितियों में वे उस इलाके में कितने दिन टिकी रही। वैसे ही सर्वहारा सत्ता या उसके द्वारा समाजवाद के निर्माण की दिशा में उठाये गए कदम का महत्व इससे कम नहीं होता कि वे उस देश में कितने दिनों तक टिकी रही। मार्क्सवादी हमेशा परिस्थितियों से अलग किसी सिद्धांत पर आधारित कर के अपनी दिशा निर्धारित नहीं करते बल्कि परिस्थितियों के ठोस विश्लेष्ण के आधार पर अपने व्यवहार का निर्धारण करते है और क्रांति की दिशा में आगे बढ़ते है। क्रांति का उद्देश्य हमेशा लाल सत्ता की स्थापना होता है और यह हमेशा किसी बनी बनायी सिधांत से नहीं बल्कि मार्क्सवादी सिद्धांत के सहारे परिस्थितियों के ठोस और वैज्ञानिक विश्लेष्ण से निर्धारित होता है। साम्राज्यवाद के दौर में असमतल पूंजीवादी विकास के चलते किसी एक देश मे जो कमजोड़ कड़ी हो, वहाँ क्रांति होना, सर्वहारा सत्ता स्थापित करना और समाजवाद स्थापित करना सम्भव हो पाया था। लेनिन, स्टालिन, माओ एवं उस धारा के अन्य क्रांतिकारी इसी ठोस परिस्थिति के विष्लेषण के आधार पर क्रांति कर सके थे। इसे कहते है-जमीनी काम।
लेकिन कुछ लफ्फाज क्रांतिकारी यही चुक जाते रहे है और एक देश में समाजवाद के सिद्धांत के विरोध का सिर्फ माला जपते रहे है। इतिहास में यही उनकी त्रासदी रही है।
क्रांति क्यो हो कर रहे गी, वे परिस्थितियां जो विराट मिहनतकस समुदाय को क्रांति की तरफ धकेल रही है, बजाय इस पर फोकस करने के कुछ लोग बिल्कुल उलट सोचते है। एक देश मे क्रांति क्यो नही हो सकती, पिछड़े देश मे क्रांति क्यो नही हो सकती; क्रांति अगर सिर्फ एक देश मे सफल हो गई तो फिर एक देश मे समाजवाद का निर्माण क्यो नही किया जा सकता आदि आदि उल्टे सीधे प्रश्न से भले ही कोइ पूंजीवादी बुद्धिजीवियों को चकाचौंध कर दे, सर्वहारा बुद्धिजीवी ऐसे बे - सिर पैर के उलटबासी को खूब समझते रहे है।
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