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Friday, 16 September 2022

स्टॅलिनकालीन सोवियत युनीयन में क्या औधोगीकरण किसानो की कीमत पर ?

स्टॅलिन पर अक्सर यह गलत आरोप लगाया जाता है कि स्टॅलिनकालीन सोवियत युनीयन  में औधोगीकरण किसानो की कीमत पर 'आदिम समाजवादी संचय' को सुनिश्चित किया गया. जबकि तथ्य बिलकुल इसके उल्टा है. , संचय का अधिकांश, जो समाजवादी औधोगिकरण के लिए जरुरी था, अर्थव्यवस्था के गैर-कृषी क्षेत्र से प्राप्त किया  गया था  और  इसे  मजदूर  वर्ग द्वारा तैयार किया गया था.

सोवियत युनीयन और पीपुल्स चीन में किसान और औधोगीकरण का सवाल
विजय सिहं
  हाल ही में  हुई एक चर्चा में एक कमरेड ने यह दलील पेश की  'कि स्टालिन ने किसानो के शोषण के जरिये अधिशेष का  उत्पादन किया, और इससे शहरी औधोगीकरण का आर्थिक प्रबंध किया गया और जीवित रखा गया. इसके अलावा,  जैसाकि बेथाइलम ने कहा है,  किसानो के बीच बोल्शेविको  के कमजोर संगठन (यह स्टालिन के अहम हो जाने से पहले की बात है) के चलते यह शोषण बदतर होता  गया था, जो परिणामस्वरूप अवाम के बीच दुश्मनाना अंतर्विरोध के रुप में सामने आया.  असल मे मैं यह नही सोचता कि स्टालिन कोई बेरहम शख्स थें जिन्होने जानबुझ कर मजे के लिए किसानो को मारा, बल्कि मेरा सोचना ये है कि शहरी औधोगीकरण की अनिवार्यता और बोल्शेविक और किसानो के बीच कमजोर रिशते का अंजाम एक ऐसे बेरहम नजरिए के बतौर सामने आया जो किसानो को उन मुश्किलो की ओर ले गया.  मेरा ये सोचना है कि किसानो और औधिगिकरण के बीच नजरिये का ये फर्क स्टालिन और माओ के नीतियों के बीच का एक गुणात्मक फर्क है'.
प्रगतिशील हलको  में यह नजरीया कोई असामान्य नही है. मगर एतिहासिक हकीकत से इसका रिश्ता काफी कमजोर है. इस समझ के खिलाफ निम्नलिखित जवाव दिया गया .
मगर एसा कोई सबुत नही है जो इस ओर सकेंत करती हो कि सोवियत औधोगिकरण 'किसानो के शोषण के जरिये उगाही किये गये अधिशेष के द्वारा वित्त-पोषित किया गया था'. ट्रोटसकी के एक सहयोगी, प्रियोब्रेझेनस्कि ने 1920 में कहा था कि किसानो के साथ सोवियत मेहनतकश वर्ग के एक 'भीतरी उपनिवेश, जैसा व्यवहार किया जाए. उसने यह प्रस्ताव रखा कि किसानो से निचोड़े गए अधिशेष का इस्तेमाल 'अति-औधोगिकरण' के लिए होना चाहिए.' स्टालिन ने इस नजरिए को खारिज कर दिया लेकिन बाद में देउत्सचेर और उसके बाद कई दुसरे लोगो  द्वारा स्टालिन पर प्रियोब्रेझेनस्कि से इस विचार को चुराने का आरोप लगाया गया और इस नीति को प्रथम  पंचवर्षीय योजना में लागु करने की बात कही गई.  इन विचारो को  उनके द्वारा भी दोहराया गया जो ट्रोटस्किवाद और माओवाद के मिलन के हिस्सा थें, जो 1960 के अंत में पेरिस में संपन्न  हुआ था. बैथेलम जैसाकि जाना जाता है 1930 से सीपीएसयु की 20बी कोंग्रेस तक ट्रोटस्कि के जाने-माने समर्थक थें, इसके बाद उन्होने ख्रुश्चेव समर्थक फ्राँस की क्मयुनिष्ट पार्टी को अपना समर्थन देना शुरु किया, और फिर चीन की सांस्कृतिक क्राँति को समर्थन दिया. सोवियत इतिहास पर बैथेलम का विचारधारत्मक नजरिया 1930 के बाद से जिन-जिन विचारधारात्मक प्रवृतीयों को उन्होने गले लगाया उसकी एक बमेल खिचड़ी है. इन मे से बहुत सारे विचार हालिया प्रगतीशील बुद्धिजीवी समाज के हिस्सो द्वारा ढोया जा रहा है. इसके साथ समस्या केवल यह है कि ऐतिहासिक हकीकत मे इन धारणाओं की कोई बुनियाद नही है. 
सोवियत साम्रगी और दस्तावेजों को बुनियाद बना कर इसका गहरा अध्ययन केवल सोवियत आर्थिक इतिहासकार ए,ए.बर्सोब द्वारा उनकी किताब 'Balans stoimostnykh  obmenov mezhdu gorodom i derevnei', मोस्को, 1969 में किया गया है.  जबकि यह किताब  और उनसे जुडे हुए दस्तावेज केवल रुसी (भाषा) मे उप्लबध है  मगर उनकी समीक्षा कई सारे विशेषज्ञयों द्वारा की  गयी  है.  मिसाल के लिए , माइकल एल्लमान की 'डिड द ऐग्रिक्लचरल  सरप्लस प्रोवाइड द रिसोर्स फोर द इनक्रीज इन इनवेस्टमेण्ट इन द युएसएसआर?'( द इकोनोमिक जर्नल, दिसंबर 1975, 844-864.) और अरबिंद व्यास 'प्राइमरी एक्युम्युलेन इन द युएसएसआर रीविजीटेड' (कैमब्रिज जर्नल अफ इकोनोमिक्स 1979, 3,119-130) को देखा जा सकता है.
ए.ए.बर्सोब ने जो कहा वह यह है:
'………सोवियत किसानो की मेहनत से निर्माण किये गये अधिशेष उत्पाद ने ताकतवर समाजवादी उद्धोग को खड़ा करने में एक बडी भुमिका अदा की. इस बेहद अहम ऐतिहासिक काम के समाधान मे सोवियत किसानो का दिया गया योगदान महान था. फिर भी, संचय का अधिकांश, जो समाजवादी औधोगिकरण के लिए जरुरी था, अर्थव्यवस्था के गैर-कृषी क्षेत्र से प्राप्त किया  गया था  और  इसे  मजदूर  वर्ग द्वारा तैयार किया गया था'.

बर्सोव की बुनियाद पर अरविंद व्यास ने मार्क्सियन मूल्यों के संदर्भ में संकेत दिया है कि सोवियत औधोगिकरण के आर्थिक प्रबंधन में दो-तिहाई संचित धन उधोगों से आया  था और उधोग के विकास के लिए जरुरी एक तिहाई अधिशेष उत्पादों से आया था. उन्होने इस पर भी ध्यान खिंचा है कि 1928 और 1932 के बीच कुल कृषि अधिशेष नाकारत्मक था. बर्सोवा के द्वारा पेश किये गए सबुत उन लोगो के नजरिए को खारिज करतें हैं जो यह तर्क देतें हैं कि स्टालिन ने प्रियोब्राझेनस्कि द्वारा सुझाई गई पहले की नीति का अनुसरण किया  था जो किसानो की कीमत पर 'आदिम समाजवादी संचय' को सुनिश्चित करता है. व्यास ने आगे ध्यान दिलाया कि पहली पंच वर्षीय योजना के दौरान शहरी जीवन स्तर में तेज गति से गिरावट आई थी, वास्तविक शहरी मजदुरी 49% तक गिरा, जिसने एक बहुत अधिक उच्च दर्जे के संचय की मंजुरी  दी. अहम तौर पर यह सोवियत के मजदुर वर्ग का त्याग था जिसने सोवियत औधोगिकरण को सुनिश्चित किया.
माइकल एलमान ने यह ध्यान दिलाया कि पहली पंचवर्षीय  योजना के दौरान औधोगिकरण के लिए संसाधन मुहैया कराना कृषि के लिए मुमकिन नहीं था. उसने दलील दिया है कि  'पहली पंचवर्षीय योजना के दौरान निवेश का आकार बढा कर पहले से चार गुणा कर दिया गया था और 1928 के  राष्ट्रीय आय  के 14% से बढ कर 1932 में 44.1 % हो गया था. साफ तौर पर, 1928 के दामो को आँका जाए तो, 1928-32 में औधोगीकरण के लिए संसाधनो को कृषि  मुहैया नही करा सकता था, क्योंकि पहली पंचवर्षीय  योजना के अंत तक सालाना निवेश सालाना कृषि पैदावार का  दोगुना था, और पंचवर्षीय  योजना  के दौरान किसी भी साल कृषि के कुल पैदावार से निवेश  में बढ़त (यानीकि  1928 में निवेश की तुलना में 1932 में निवेश का आधिक्य) पर्याप्त मात्रा में अधिक था. .. पहले पंचवर्षीय योजना के दौरान सोवियत राष्ट्रीय आय 60% बढ़ा और असल में यह सभी आय निवेश को बढ़ाने के लिए इस्तेमाल में लाया गया.' एल्लमान जो मार्क्सवाद के समर्थक नहीं थे, इस बात में स्पष्ट थें कि ' …….जो भी हो यह बात बेबुनियाद है कि पहली पंच वर्षिय योजना के दौरान निवेश में बढ़त का आर्थिक प्रबंध कृषि के अधिशेष में बढ़त से की गई.'
यह कहना वैसे ही सही है कि औधोगिक मजदुर वर्ग के पार्टी के बतौर बोलशेविकों का सोवियत किसानो के बीच कमजोर आधार था जैसे  यह कहा जा सकता है कि सीपीसी का मजदुर वर्ग के बीच  एक कमजोर आधार था. लेनिन और बोलशेविकों का विचार था कि   औधोगिक मजदुर वर्ग ही एक मात्र वर्ग था जो समाजवाद की क्रांति का नेतृत्व कर सकता था  और इसे साम्यवाद मे तब्दिल कर सकता था. इस वजह से वे औधोगिक मजदुर वर्ग को तरजीह देते थे.  उन्होने नरोदवाद को नही स्वीकारा. बोल्शेविक इंकलाबी जनवाद के लिए संघर्ष मे पुरे किसान वर्ग से और समाजवाद के लिए संघर्ष मे मेहनतकश किसान से सहयोग के लिए फिक्रमंद थें. अक्टुबर क्रांति और समुहिकीकरण (और ग्रेट पेट्रोटिक वार) ने दिखलाया कि किसान मजदुर वर्ग के अहम सहयोगी थें. सोवियत युनियन मे सामुहिकीकरण के दौरान एक पुरे वर्ग के तौर पर   किसान और मजदुर वर्ग के बीच  कोई आम दुशमनी नही थी, जैसा कि आपने  दलील दिया है. वे सहयोगी थें लेकिन बोल्शेविकों का कोई यह मकसद नहीं था कि एक ऐसी पार्टी का निर्माण करे जिसमें मेहनतकश किसान मात्रात्मक तौर पर अधिक अहम हों. एक तरफ मेहनतकश वर्ग और मेहनतकश किसान और दुसरी तरफ  कुलक, जिसे लेनिन ने आखिरी पुँजीवादी वर्ग कि उपाधि से नवाजा था,  के बीच केवल शत्रुतापूर्ण संबंध  मौजुद था. लेनिन और वोल्शेविकों ने नहीं सोंचा था कि कुलक 'आवाम' का हिस्सा थे बल्कि वे उनके लिए बुर्जुआजी का अंग थे.  एक पुरे वर्ग के तौर पर आम किसान और बोल्शेविकों के बीच केवल  संबध के संदर्भ में बात करना बहुत ही संदेहाद्पद है.  बोल्शेविको  ने मार्क्स और एंगेल्स का अनुसरण करते हुए धनी किसानो को सामुहिक फार्म और क्मयुन से बाहर रखा.  फ्राँस और जर्मनी  में किसानो के सवाल पर  अपनी किताब में एंगेल्स ने यह ध्यान दिलाया है कि सामुहिक फार्म छोटे किसानो द्वारा बनाया जाना चाहिए. उन्होंने  दलील दी है कि : 'मार्क्स और मैने कभी इस बात में शक नही जाहिर किया कि एक मुकम्मल साम्यवादी अर्थव्यवस्था में तब्दिली के दौरान हमे बडे पैमाने पर एक मध्यवर्ती चरण के बतौर कोपरेटिव व्यवस्था का इस्तेमाल करना पडेगा. यह केवल इस तरह से संगठीत करना चाहिए कि समाज, शुरुआती दौर में केवल राज्य, उत्पादन के साधनो पर हक  रखे  ताकि पुरे समाज के  निजी हित के रु-बरु कोपरेटिव खुद के  निजी हित को कायम ना कर सके.' सोवियत समाज में सामुहिकीकरण के बाद उत्पादन के साधन चाहे वह जमीन हो या कृषि की मशनरी हो इसका मालिकाना हक राज्य के पास था जो मजदुर वर्ग के नियत्रंण में था. 
1927 के बाद चीन की कम्युनिष्ट पार्टी (सीपीसी) में  मजदुर वर्ग से  स्पष्ट वजहों से बहुत कम सदस्यता थी. यह कोई एसी बात नही थी जो सीपीसी चाहती हो; यह कवामितांगो द्वारा उकसाए गए कम्युनिष्टों और मजदुरों के नरसंहार के जरीए उनपर थोपा गया था. कम्युनिष्टों को शहरी क्षेत्रों से निकाल बाहर किया गया था  ताकि शहर में सीपीसी का काम भुमिगत किया जा सके. इस अंजाम के बतौर सीपीसी अपने सामाजिक विन्यास में एक किसान पार्टी बन गई.  केवल 1949 के बाद सीपीसी ने खुद के लिए एक नए औधोगिक मजदुर वर्ग  की बुनियाद के  निर्माण का प्रयास किया हालाकि किसी भी तरीके से यह इसकी सदस्यता का बड़ा हिस्सा नही रहा है– इसके बावजुद कि वह राज्य सत्ता पर कब्जा करने बाली पार्टी बन चुकी थी. इंकलाबी जंग के दौरान करीब-करीब मजदुर वर्ग के बुनियाद ना होने के बावजुद सीपीसी को ना कि केवल विचारधारा का बल्कि वास्तविक सर्वहारावादी हिदायतों का लाभ मिला. इसे सोवियत मजदुर वर्ग और सीपीएसयु (बी) की लगतार मदद मिली.
पंचवर्षीय  योजनाओं के तहत  सोवियत औधोगिकरण ने ना केवल एक ऐसे भौतिकवादी आधार का निर्माण किया जो पश्चिम मे हिटलरवाद  को हराया वल्कि इसने सोवियत (और मंगोलियन ) सेना को इस बात में सक्षम बनाया कि यह मंचुरिया में घुसे और जापान की 4th आर्मी का खात्मा करे.  अगर  सी.पी.एस.यु(बी) बुखारिन की 1920 की नीति का या 1956 के  बाद के माओ की नीति का अनुसरण किया होता,  मतलब कि  हल्के उधोग और कृषि के विकास पर जोर  दिया होता  तब सोविएत युनियन में एक सश्क्त खनीज और इंजनीयरींग उधोग का आधार  नही होता  और यह नाजी जर्मन और तोजो के जापान से लड़ना नामुमकिन ना सही तो मुश्किल  बना देता. जापान के उपर मंचुरिया में सोवियत की चौंका देने बाली जीत का यह अंजाम निकला कि इसने चीनी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी को क्वामितांगो से  शरण लेने से में सक्षम बनाया, इसे इसके भौतिक विनाश से बचाया, और सोवियत युनियन से जापानी शस्त्र पाने में सक्षम बनाया  जो  दक्षिण की ओर बढ़ कर  क्वामितांगो को हराने में इस्तेमाल हो  सकती थी.  सोवियत आर्मी ( और बुलगारीयन )  के पुर्वी युगोस्लाविया और मंचुरीया में प्रवेश ने युगोस्लाविया और चीन दोनो जगह जनवादी जीत को सुनिशचित कराया. दोनों देशों के राष्ट्रवादी तत्वों का कहना था कि (बजाय घर की छत से चीखने के) उनकी जीत आंतरिक सशस्त्र बलों पर आधारित थी.
कम्युनिष्ट पार्टी में, मजदुर और किसानो के ताकत का अनुपात और पार्टी का सामाजिक गठन ऐतिहासिक हालातों से तय हुआ था  और यह सोवियत रसिया और चीन दोनो जगह में वक्त के साथ बदलता गया.
आपने दलील दी है कि स्टालिन की तुलना में, माओ के औधोगिकरण पर  नजरिया  और किसानो के प्रति  रुख में गुणात्मक  फर्क था. हमने ध्यान दिलाया है कि यह तर्क बेबुनियाद है कि  स्टालिन ने किसानो का शोषण किया था. जिस चीनी मिसाल को आपने तरजीह दी है, चीन की ये नीतियाँ स्टालिन के बाद आए सोवियत नेतृत्व के नजरिए से तालमेल रखती थीं. दोनो देशो में औधोगिकरण (उत्पादन के साधनो का औधोगिकरण) 1957 के बाद कृषि और हल्के उधोगों की किमत पर नीचे की ओर किया  गया. केन्द्रिय मार्गदर्श्क योजना का दोनो ही देशो में खात्मा हुआ और इसके बदले विकेन्द्रीकृत 'समकक्ष योजना' लाई गई. दोनो देशो  में कृषि में  समाजीकृत उत्पादन के साधन, मशीन ट्रेक्टर स्टेशन सामुहिक फार्म/पीपुल्स क्मयुन के हाथों में सौप दिया गया, इसके बाद अर्थव्यवस्था में माल-मुद्रा संबध के क्षेत्र का विस्तार  किया गया. (हालांकि यह स्वीकार करना जरुरी  है कि पिपुल्स चीन में सामुहिकीकरण और पीपुल्स कम्युन के  कायम होने से अर्थव्यवस्था में  माल-मुद्रा के संबधो मे कमी आई ). 1955 के बाद पिपुल्स चीन मे सामुहिक फार्मों के सामाजिक वर्ग की बुनियाद सोवियत और शुरुआती चीन के सामुहिक फार्म से अलग थी. जबकि मार्क्स और एगेंल्स ने दलील दी थी  कि सामुहिक फार्म के सामाजिक वर्ग की बुनियाद छोटे किसान होंगे,  सीपीसी के नेतृत्व ने सामुदायिक फार्मों में कुलक और पुराने जमींदारो को भी शामिल कर लिया, जैसा कि 1955 के बाद कमिनफर्म के भय से टीटो द्वारा युगोस्लाव में 1948 मे किया गया था. इन  उत्पादन संबंधो को  पीपुल्स कम्युन तक ले जाया गया जो कि उन्हें स्थापित किए जाने के समय  राष्ट्रीय बुर्जुआजी, जमींदार , कुलाक और मेहनतकश  के बहु-वर्गीय गठन थे. पीपुल्स कम्युन ने सभी तरह के ग्रामीण उधोग को  शामिल कर लिया जिसमे खाद फैक्टरी के साथ साथ स्टील प्लांट और स्टीमशिप  कम्पनीज भी शामिल थे,  जिसका मतलब था एक विशालकाय मात्रा में उत्पादन के साधान राजकीय संपत्ति के दायरे से बाहर था जो सारे आवाम की संपत्ति का गठन करता था. अपनी नीतियों में सीपीसी ने ना केवल सामुहिक फार्म के  सामाजिक वर्गों के गठन के सवाल पर मार्क्सवाद के संस्थापको से खुद को दूर  कर लिया बल्कि सामुहिक फार्म में उत्पादन साधनो के संपत्ति संबध पर उनके नजरिये से भी दूरी  बना ली. ऐगल्स ने 20 जनवरी 1886 को बेबल को लिखे गए अपने पत्र में कहा था : 'मार्क्स और मैं ने कभी भी शक नही किया कि पूरी  साम्यवादी अर्थव्यवस्था में रुपातरंण के लिए हम मध्यवर्ती चरण के तौर पर सहकारी व्यवस्था का बडे पैमाने पर  इस्तेमाल करेंगे. इसे इस तरह से संगठीत करना  होगा कि समाज , शुरुआती दौर में राज्य, उत्पादन के साधन का स्वामित्व रखे ताकि सहकारी निजी हित सम्रग तौर पर खुद को कायम ना रख सके.'
ये सभी चीजें यह सुझाती है कि स्टालिन, ख्रुश्चेव और माओ त्से तुंग के अंतर्गत  सोवियत युनीयन और पीपुल्स चीन में किसान और औधोगिकीकरण के सवालों को  नए तरीके से और दक्षीणपंथी सिंधात से हटा कर बडे ध्यान से देखा जाना चाहिए, जिसे 20वी कंग्रेस से फैलाया जाया रहा है ,.

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