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Monday, 26 September 2022

हार्वड फ़ास्ट- आदि विद्रोही



अनुवादक की ओर से


विश्व के अाधुनिक साहित्यकारों में हावर्ड फ़ास्ट एक बड़ा नाम है। अब तक उसकी सत्ताइस कृतियाँ निकल चुकी हैं जिनमें चौदह उपन्यास हैं, तीन कहानी संग्रह हैं, दो इतिहास ग्रन्थ हैं, एक नाटक है, एक थालोचना पुस्तक है, चार किशोरोपयोगी कथा कृतियाँ हैं और दो सम्पादित ग्रन्थ हैं ।


फास्ट की अधिकांश पुस्तकें संसार की अनेक भाषाओं में अनूदित हो चुकी हैं। हमारी भाषा में अब तक सम्भवतः दो ही आ पाई हैं— 'मुक्ति-मार्ग' और 'पीक - स्किल' | 'मुक्ति-मार्ग' ऐतिहासिक उपन्यास है और 'पीक - स्किल' समसामयिक इतिहास की एक घटना का कथात्मक विवरण, तथापि विषय वस्तु दोनों की एक है, नीग्रो जाति के स्वत्वों का संघर्ष । और बात केवल नीग्रो जाति की नहीं है । जो मी पददलित है, जिस पर भी श्रन्याय और अत्याचार होता है उसके साथ इस लेखक की सक्रिय सहानुभूति है, वह व्यक्ति या समूह कहीं का हो, कोई हो, किसी वर्ण का, किसी जाति का, किसी देश का, किसी युग का । लेखक की यह सहानुभूति कितनी सच्ची कितनी सक्रिय है इसका सबसे सबल प्रमाण तो 'पीक- स्किल' की वही ऐतिहासिक घटना है जिसमें गोरी चमड़ी के अन्य सद्विवेकशील व्यक्तियों के साथ-साथ फास्ट ने भी अपने नीग्रो बन्धुओं के कन्धे से कन्धा मिला कर, सचमुच उनके हाथ-में हाथ देकर अपने प्राणों की बाजी लगाकर उन संगठित, प्रतिगामी, नीग्रो विरोधी शक्तियों से युद्ध किया जिनकी आज भी 'सभ्य' अमरीका में तूती बोलती है, जो नीग्रो को कुत्ता समझते हैं, जिनकी दृष्टि में एक नीग्रो के प्राण का मूल्य कुत्ते से भी कम होता है और जिनको नीग्रो के स्वाभिमान अथवा स्वत्वों की बात कान में पिघला सीसा उँडेलने जैसी जान पड़ती है ।


उत्पीड़ित के प्रति लेखक की इस सक्रिय संवेदना का रहस्य क्या है ? यह रहस्य और कुछ नहीं है, केवल इतना कि उसकी त्वचा का रंग चाहे जो हो, वह स्वयं भी उसी ग़रीब उत्पीड़ित वर्ग से आया है। सबसे पहले उसका अपना जीवन-अनुभव और फिर उसकी जीवन-दृष्टि उसको सभी उत्पीड़ितों की ओर अपना बन्धुत्व का हाथ बढ़ाने के लिये प्रेरित करती है ।


फास्ट ने एक स्थान पर अपने जीवन के बारे में कुछ पंक्तियाँ लिखी हैं। फ़ास्ट की मनोरचना और उसके साहित्य को ठीक से समझने में निश्चय ही उससे सहायता मिलेगी । वह लिखता है -


- मेरा जन्म न्यूयार्क शहर में ११ नवम्बर १५१४ को एक मज़दूर परिवार में हुआ। मेरे पिता पहले एक लोहे के कारखाने में काम करते थे, फिर बस कन्डक्टर हुए और सबसे अन्त में एक रेडीमेड कपड़ों के कारखाने में काम करने लगे। मैं जब आठ वर्ष का था मेरी मां मर गई और मैं अपने दो भाइयों के साथ न्यूयार्क शहर की एक गन्दी बस्ती में भयानक ग़रीबी में पला और बढ़ा ।


- मुझे ग्यारह साल की उम्र से ही जीविका कमाने में लग जाना पड़ा इसलिए स्वभावतः मैं पढ़ न सका । सोलह साल की उम्र में मैंने 'हाई स्कूल की परीक्षा पास की। उसके बाद फिर कभी मैंने स्कूल का मुँह नहीं देखा, सिवाय उस एक साल के जब मैंने छात्रवृत्ति से एक चित्रकला अकादमी में शिक्षा ली। लेकिन वह चीज भी चल न सकी क्योंकि जो समय वहाँ जाता था उसको जीविकोपार्जन में लगाना जरूरी था।


-- ग्यारह से लेकर इक्कीस साल की उम्र तक मैंने जीविकोपार्जन के लिए बहुत तरह के काम किये - अख़बार बाँटे, सिगार के कारखाने में की सफाई की, तामीरी कामों में साधारण कुली का काम किया और होते-होते अन्त में मैं भी न्यूयार्क के एक रेडीमेड कपड़ों के कारखाने में काम करने लगा ।


— मैं स्वयं शिक्षित व्यक्ति हूँ | सोलह का होते होते मैं लिखने लगा था। मैंने लिखते-लिखते लिखना सीखा। हो सकता है साहित्य रचना की कुछ नैसगिक क्षमता भी मेरे अन्दर रही हो । मेरी पहली किताब लगभग तेईस वर्ष पहले छपी थी । यह एक प्रेम कहानी थी जिसका वास्तविकता से कोई सम्बन्ध न था । इस किताब से मुझको कुल सौ डालर की आमदनी हुई थी । जब मैं इक्कीस का था मैंने 'द चिल्ड्रेन' लिखी जो एक प्रसिद्ध कहानी पत्रिका में छपी। इसके भी मुझको सौ डालर मिले लेकिन अब मुझे इस बात का विश्वास हो गया कि मैं लिखकर अपनी जीविका चला सकता हूँ। पचीस साल की उम्र तक पहुँचते-पहुँचते मुझको अपनी कहानियों के लिए अच्छा पारिश्रमिक मिलने लगा था और मेरी किताबें भी बिकने लगी थीं। 'लास्ट फॉन्टियर' से मुझको पहली उल्लेखनीय ख्याति मिली । यह पुस्तक १९४१ में प्रकाशित हुई थी । 'सिटिज़ेन टॉम पेन' का प्रकाशन होते ही मेरी किताबों की बिक्री लाखों होने लगी और मेरा नाम काफ़ी फैल गया । १९४६ तक सब कुछ ठीक से चला मगर उसी वर्ष से सरकारी आतंक ने देश को बुरी तरह जकड़ लिया और मेरी किताबों की व्यापक बिक्री में रुकावट पैदा होने लगी । तब तक अमरीका में मेरी एक करोड़ से ज्यादा किताबें बिक चुकी थीं.....


इसके बाद वह स्थिति आई जब कि प्रस्तुत पुस्तक छापने के लिए अमरीका का कोई प्रकाशक तैयार न था और फ़ास्ट को स्वयं अपने साहित्य रसिक मित्रों की सहायता से इसको छापने की व्यवस्था करनी पड़ी ।


हमारे इस विक्षुब्ध युग में दो विरोधी विचारधाराओं और समाज व्यवस्थाओं का जो शीत युद्ध निरन्तर चल रहा है, यह घटना भी उसी का एक प्रतिफलन है। सम्प्रति अमरीका के कुछ प्रभावशाली हलक े अपने देश के इस महान् लेखक का नाम लेने से घबराते हैं और चाहते हैं कि किसी उपाय से उसकी स्मृति भी मिट जाय। लेकिन वे भूल जाते हैं कि हावर्ड फास्ट, वाल्ट ह्विटमैन और माक ट्वेन  जीवन्त और संघर्षशील मानवतावादी परम्परा का लेखक है, जिस परम्परा का सूत्रपात टॉम पेन, जेफरसन और अब्राहम लिंकन जैसे लोगों ने किया था, जो परम्परा अमरीकी राष्ट्र की आधार शिला है, जिस परम्परा का स्वर स्वयं उनके स्वाधीनता के घोषणापत्र में गूँज रहा है -


- और जो आज डालरों की झनकार में, आणविक ब्रह्मास्त्रों के तुमुल घोष में डूब गया है, खो गया है।


मनुष्य मात्र की स्वाधीनता, साम्य, और मुक्त विवेक की इसी खोई हुई, बिसराई हुई अमरीकी परम्परा को फिर से खोजने, जोड़ने और समझने की कोशिश इस अमरीकन यहूदी लेखक ने अपनी अनेक कृतियों में की है। कन्सीन्ड इन लिबर्टी, द लास्ट फॉन्टियर, दिन बैक्वड, सिटिज़ेन टॉम पेन, फ्रीडम रोड, दि अमेरिकन, द प्राउड ऐण्ड द फ्री, द पैशन ऑफ सैको ऐन्ड वैनज़ेटी और साइलस टिम्बरमैन नामक उपन्यासों, प्रायः डेढ़ दर्जन कहानियों, थर्टी पीसेज़ ऑफ सिलवर नामक नाटक और स्किल नामक कथात्मक इतिवृत्त, सबमें यही एक ही मूल भावना मिलती है।


इतिहास हावर्ड फ़ास्ट का प्रिय विषय है, अपने देश का इतिहास, अपनी जाति का इतिहास, संसार का इतिहास; और इतिहास उस अर्थ में नहीं जिस अर्थ में राजा-रानी की प्रणय कथा इतिहास होती है या लड़ाई में किसी राजा की हार-जीत इतिहास होती है या राजमहल में चलनेवाले षड्यंत्र इतिहास होते हैं बल्कि इतिहास वह जो अपना स्रोत कोटि-कोटि साधारण जनों की क्रिया-शक्ति में पाता है, जिसकी दृष्टि राजा से अधिक प्रजा पर होती है और जो उन सामाजिक शक्तियों को समझने का प्रयत्न करता है जिनके अन्तरसंघर्ष से जीवन में प्रगति होती है। हावर्ड फ़ास्ट के पास ऐसी ही तीक्षण ऐतिहासिक दृष्टि है और व्यापक भी, जो स्थान, काल, किसी का कोई भेद नहीं मानती, जिसके लिए दुनिया एक और अखंड है और यह सब भौगोलिक और राजनीतिक सीमाएँ झूठी हैं और समय एक निरन्तर बहती हुई नदी है जिसमें भूत भविष्यत् वर्तमान नाम के काल-खंड केवल समझने-बूझने की सुविधा के लिए बनाये गए हैं -


ऐसे एक और अखंड जगत् में, एक और अविच्छिन्न कालप्रवाह में वह प्राणी रहता है जिसका नाम मनुष्य है, जो सर्वसहा, मूर्त क्षमा पृथ्वी का पुत्र है, तेजः पुंज, दृढ़वती, धीमान्, सत्याश्रयी, अक्रोधी, अशेष धैर्यवान्, जो सब जानता है, सब समझता है, सब सहता है, और सीमा का अतिक्रमण होने पर फिर एक रोज़ फूट पड़ता है । उसी को भूकम्प कहते हैं ।


ऐसे ही भूकम्पों की, विद्रोहों की कहानी हावर्ड फ़ास्ट ने कही है । उसके लिए इतिहास न्याय के संघर्ष की गाथा है । और जहाँ भी न्याय के लिए संघर्ष होता है, खून गिरता है वहाँ लेखक खड़ा है, कोई भी देश हो कोई भी काल हो। जहाँ 'साइलस टिम्बरमैन' में लेखक आज के अमरीका की कहानी कहता है वहाँ 'आदिविद्रोही' में वह ईसा से ७३ वर्ष पूर्व के रोम की कहानी कहता है जब गुलामी की प्रथा अपने शिखर पर थी और उन्हीं गुलामों में से एक उस पाशविक प्रथा को चुनौती देने का विवेक और साहस अपने आप में पाया था। 'माई ग्लोरियस ब्रदर्स' में लेखक ईसा से डेढ़ दो सौ वर्ष पूर्व के इज़रायल में पहुँच जाता है और उन पाँच भाइयों की कहानी कहता है जिनके नेतृत्व में वहाँ के ग़रीब किसानों ने तीस वर्ष तक अपनी मातृभूमि की स्वाधीनता की रक्षा के लिए मृत्युंजय संघर्ष किया था ।


फास्ट की कृतियों में बहुत बार यह संघर्ष स्थूल भौतिक दृष्टि से पराजित होता है, विद्रोह असफल रहता है और उसके नायक गोली से उड़ा दिये जाते हैं, सलीब पर टांग दिये जाते हैं, मैदान में खेत रहते हैं । तब भी उन विद्रोही संघर्षकारियों, योद्धाओं की अन्तिम विजय में हमारी आस्था कभी नहीं खोती और पुस्तक समाप्त करने पर मन जहाँ गहरी उदासी से भरा होता है वहाँ उस उदासी में और सब कुछ हो पर निराशा का रंग नहीं होता । साहित्य की कीमियागरी शायद यही है जो हार को जीत में परिणत कर देती है। संघर्ष की असल पराजय आत्मा की पराजय है और सभी श्रेष्ठ मानवतावादी कलाकारों की भाँति हावर्ड फास्ट के यहाँ भी आत्मा कभी पराजित नहीं होती, उसका अजेय स्वर कभी मन्द नहीं पड़ता।


शिल्प की दृष्टि से भी फ़ास्ट के इन ऐतिहासिक उपन्यासों का असाधारण महत्व है । बहुधा देखा जाता है कि ऐतिहासिक उपन्यास या तो प्रेम कहानी बन कर रह जाते हैं या इतिहास के आँकड़ों में ऐसे उलझ जाते हैं कि उपन्यास उपन्यास न होकर इतिहास का ग्रन्थ बन जाता है। फास्ट के ऐतिहासिक उपन्यास इन दोनों दोषों से मुक्त हैं। एक ओर जहाँ वे युग विशेष के जीवन का समग्र, सम्पूर्ण चित्र देते हैं और इतिहास की दिशा का संकेत करते हैं वहाँ दूसरी श्रोर उनकी औपन्या सिकता में रत्ती भर कमी नहीं आने पाती । कथावस्तु की रोचकता, वाता वरण की चित्रमय सृष्टि, रक्त मांस के सजीव, अत्यन्त सजीव, पात्र ये सभी बातें अपने श्रेष्ठतम रूप में फ़ास्ट की कृतियों में मिलती हैं । विशेषतः 'आदिविद्रोही' में जो कि शायद लेखक की सबसे महान् कृति है । पुस्तक की असाधारण रूप से गठी हुई शैली अनुवादक के लिए एक बहुत बड़ी चुनौती थी, इसमें सन्देह नहीं । अनुवाद सफल हुआ या नहीं, इसका निर्णय भी पाठक ही कर सकेगा । पर तो भी अनुवादक के ना मुझे इस बात का सन्तोष है कि मैंने पूरी निष्ठा के साथ काम किया है । मेरा यह भी विश्वास है कि अनुवाद की सारी कठिनाइयों और क्षमताओं— के बावजूद मैं मूल ग्रन्थ की आत्मा की रक्षा काफी हद तक कर सका हूँ । इस अनुवाद कार्य में मुझको जो सुख मिला, उसको मैं व्यक्त नहीं कर सकता । केवल इतना कहना चाहता हूँ कि विश्व साहित्य की यह अमर कृति हिन्दी में प्रस्तुत करते हुए मुझे हार्दिक प्रसन्नता हो रही है।


कविता के टुकड़ों का अनुवाद मेरे आत्मीय श्री बालकृष्ण राव ने किया है जिसके लिए मैं हृदय उनका कृतज्ञ हूँ ।


- आमृत राय




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