वामपंथी पार्टियों के भीतर धर्मभीरू या कहें कर्मकांडी कार्यकर्ताओं/नेताओं की संख्या इधर खूब बढ़ी है।
पार्टी की बैठकों या क्लास तक में कॉमरेडों के मोबाईल रिंग टोन में भक्ति-भजन की गूंज खुलेआम सुनी जा सकती है। घरों के भीतर तो छोड़िए अब तो मंदिरों में जाकर पूरे विधि विधान और तानाबाना के साथ न सिर्फ कर्मकाण्ड में शामिल होने बल्कि उसे नि:संकोच फेसबुक पर सार्वजनिक करने की खुली प्रवृत्ति कई जिला स्तर के पार्टी नेताओं में घर कर गयी है। पार्टी कार्यालयों में भी मंदिर होकर और माथे पर टीका, हाथों में पीला धागा लपेटे आने वाले कामरेड लोग अब निसंकोच बैठे मिल जायेंगे! यह एक ख़तरनाक रूझान है ! और इससे भी ख़तरनाक बात यह है कि यह प्रवृत्ति धीरे धीरे पार्टियों के भीतर स्वीकार्य होती जा रही है -- 'चलता है कॉमरेड'!
पार्टी के भीतर घर कर रही इस घोर विजातीयता से निर्ममतापूर्वक लड़े बिना हम देश में बढ़ती धार्मिक कट्टरता से कोई निर्णायक लड़ाई लड़ भी सकते हैं क्या लड़ने का प्रहसन करने के सिवाय?
(रिपोस्ट)
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