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Friday, 29 April 2022

1 मई, अन्तर्राष्ट्रीय मज़दूर दिवस

1 मई, अन्तर्राष्ट्रीय मज़दूर दिवस ज़िन्दाबाद! मई दिवस के शहीद अमर रहें!
दुनिया के मज़दूरों, एक हो!
यह घोषणा करने का दिन, कि हम भी हैं इंसान!
घृणित दासता किसी रूप में नहीं हमें स्वीकार!!

साथियो! दुनिया भर में पहली मई का दिन मज़दूर दिवस के रूप में मनाया जाता है। मज़दूर वर्ग का अपना शानदार इतिहास रहा है। इस दुनिया में एक तरफ़ कमेरों का वर्ग है जिसकी मेहनत के दम पर सारी चमक-दमक कायम है लेकिन मेहनतकशों की ज़िन्दगी तबाह-बर्बाद है। 12-12 घण्टे काम करके भी गुजारा नहीं, बच्चों के लिए अच्छे दवा-इलाज़, शिक्षा-रोज़गार तक का प्रबन्ध नहीं हो पाता! दूसरी तरफ़ लुटेरों का वर्ग है जो बिना कुछ किये भी केवल लूट के दम पर दुनिया की दौलत पर कब्ज़ा करके बैठा है। मालिक वर्ग कम से कम मज़दूरी देकर ज़्यादा से ज़्यादा मेहनतकशों की श्रम शक्ति को निचोड़ डालना चाहता है और मज़दूर भी शोषण के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाते रहे हैं। पूँजी और श्रम के बीच ऐसा ही एक संघर्ष 132 साल पहले अमेरिका के शिकागो शहर में लड़ा गया था।

 मई दिवस का स्वर्णिम इतिहास 

1 मई 1886 को अमेरिका के लाखों मज़दूरों ने आठ घण्टे कार्यदिवस की माँग के लिए एक साथ हड़ताल करने का फैसला किया। हड़ताल में क़रीब 11,000 फैक्ट्रियों के कम से कम 3 लाख 80 हज़ार मज़दूर शामिल हुए। शहर के मुख्य मार्ग 'मिशिगन अवेन्यु' पर मज़दूर नेता अल्बर्ट पार्संस के नेतृत्व में शानदार जुलूस निकाला गया। मज़दूरों को संगठित होता देख डरे हुए मालिक-पूँजीपतियों ने भी प्रतिक्रिया स्वरूप मज़दूर वर्ग पर बार-बार हमले किये। ख़रीदे गये भाड़े के टट्टू अख़बार, पुलिस और गुण्डे मज़दूरों पर हमले के लिए लगा दिये गये। मज़दूरों के जुझारू आन्दोलन को तोड़ने के लिए मालिकों ने नीच से नीच षड्यन्त्र रचे। हड़ताल तोड़ने के लिए पुलिस के संरक्षण में तीन सौ गद्दार मज़दूरों को लाया गया। जब हड़ताली मज़दूरों ने इस गद्दारी के ख़िलाफ़ मीटिंग शुरू की तो निहत्थे मज़दूरों पर गोलियाँ चलायी गयीं। इस हमले में चार मज़दूर मारे गये और कई घायल हुए। अगले कई दिन तक मज़दूरों के ऊपर हमले जारी रहे। इस बर्बर पुलिस दमन के ख़िलाफ़ 4 मई को शहर के मुख्य बाज़ार 'हे मार्केट स्क्वायड' में जनसभा का आयोजन किया गया। सभा के अन्त में पूँजीपतियों के इशारों पर षड्यन्त्र के तहत पुलिस ने बम फिंकवा दिया और लोगों को तीतर-बीतर कर दिया। इसके बाद उल्टा दोष भी मज़दूरों पर ही मढ़ दिया गया और शान्तिपूर्ण सभा के ऊपर पुलिस ने अन्धाधुन्ध गोलियाँ और लाठियाँ बरसा दी। इस घटना में छः मज़दूर मारे गये और 200 से ज्यादा घायल हुए। घटना के दौरान मज़दूरों के रक्त से लाल हुआ कपड़ा ही मेहनतकश वर्ग का झंडा बना। बम काण्ड में मज़दूर नेताओं को फँसाकर जेल में बन्द कर दिया गया। आठ मज़दूर नेताओं को इस घटना का दोषी करार दे दिया गया। मज़दूर वर्ग के इन महान पूर्वजों के नाम थे अल्बर्ट पर्सन्स, आगस्टस स्पाईस, जार्ज एंजेल, अडोल्फ़ फिशर, सैमुएल फील्डेन, माइकल शवाब, लुईस लिंग्ग और ऑस्कर नीबे। इनमें से सिर्फ़ सामुएल फिल्डेन ही 4 मई को वारदात के समय घटनास्थल पर मौजूद था बाकी तो वहाँ पर थे भी नहीं! 20 अगस्त 1887 को इस मुकदमे का फैसला सुनाया गया जिसमें ऑस्कर नीबे के अलावा सभी मज़दूर नेताओं को फाँसी की सज़ा सुनायी गयी। 1 मई से शुरू हुआ मज़दूर वर्ग का संगठित संघर्ष यहीं पर नहीं रुका बल्कि इसके बाद दुनिया भर में 'काम के घण्टे आठ करो' का नारा गूँज उठा। हारकर पूँजीपति वर्ग को काम के घण्टे आठ के अधिकार को कानूनी मान्यता देकर स्वीकारना पड़ा और मज़दूर वर्ग के नायकों का बलिदान रंग लाया। तब से लेकर अब तक 135 साल बीत चुके हैं, इस दौरान मज़दूर वर्ग ने अनगिनत संघर्षों और कुर्बानियों के कीर्तिमान स्थापित किये। 

 मई दिवस की विरासत और हमारा समय 

दोस्तों मई दिवस को याद करना कोई रस्म निभाना भर नहीं है। मई दिवस को याद करना अपने पुरखों से संघर्ष की ऊर्जा लेना है। सच्चाई यह है कि हम मेहनतकश मज़दूरों के लिए हालात आज 2022 में 1885 से भी बदतर हैं। हमारे यहां अब किसी भी कारखाने में आठ घण्टे काम का नियम लागू नहीं होता है। आसमान छूती महँगाई के दौर में किसी को न्यूनतम वेतन नहीं मिलता। सारे श्रम क़ानून, जो मज़दूरों की कुर्बानियों की वजह से अस्तित्व में आए थे, उन्हें चार लेबर कोड बनाकर छीना जा रहा है। श्रमिकों के पास कोई भी हक़ अधिकार नहीं है। कम्पनी मालिक जब चाहे किसी को भी काम से निकाल सकता है। श्रमिकों के रोज़गार की कोई गारंटी नहीं है। कारखानों में हो रही दुर्घटनाओं में मज़दूरों के अंग भंग होने से लेकर जान तक जा रही है। कम्पनियों में सुरक्षा के कोई पुख़्ता इंतज़ाम नहीं है। मालिकों की मनमानी खुले आम चल रही है। आज की सच्चाई यही है कि मज़दूरों के ऊपर मालिकों को ताक़त हावी है। मज़दूरों की कोई बड़ी ताक़त मौजूद नहीं है जो मालिकों तथा उनकी सरकारों का मुक़ाबला कर सके।

दोस्तों, सरकारें पूंजीपति वर्ग की मैनेजिंग कमेटी होती है। सरकारों का काम मालिकों की सेवा करना है। मज़दूर मालिकों की गुलामी करते रहें इसके लिए नीतियाँ बनाना है। अगर हम मज़दूर शोषण अन्याय के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाएं तो हम पर  डंडे चलाना है, हमारा दमन करना है।  यह हमें कभी नहीं भूलना चाहिए सरकार किसी भी दल की हो वह हमेशा मालिकों की ही चाकरी करती है। आज केन्द्र में फ़ासीवादी मोदी सरकार बैठी है, तो वहीं दिल्ली में केजरीवाल सरकार। दोनों ही सरकारें घनघोर मज़दूर विरोधी हैं। 
फ़ासीवादी मोदी सरकार हम मज़दूरों को आपस में बांटने के लिए देश भर में साम्प्रदायिक तनाव फैलाने का काम कर रही है। अभी बीते दिनों जहाँगीरपुरी में हनुमान जयंती के दिन वहां साम्प्रदायिक तनाव फैलाया गया। उसके तीन रोज़ बाद वहां पुलिस तथा नगर निगम द्वारा बुलडोजर चलाकर ज़्यादातर मुसलमानों के मकान-दुकान तोड़े गए, ताकि इस घटना के बहाने ना सिर्फ़ जहाँगीर पुरी बल्कि दिल्ली व पूरे देश भर में साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण किया जाए, धार्मिक उन्माद फैलाया जाए। अभी देश भर में जहां-जहां भाजपा के हाथ में पुलिस प्रशासन है, वहां ग़रीबों के घर बुलडोजर चलाया जा रहा है, और इसका साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। दोस्तों, भाजपा चाहती है कि हमलोग जाति धर्म के झगड़ों में उलझे रहें, ताकि रोज़ी-रोटी, महँगाई, बेरोज़गारी जैसे मुद्दों पर हमारा ध्यान न जाए।  एक तरफ खाने-पीने की वस्तुओं से लेकर गैस सिलिंडर के दाम महँगे होते जा रहे हैं, पर दूसरी तरफ हमारी तनख़्वाह में रत्ती भर की बढ़ोतरी नहीं हो रही है। इन मुद्दों से ही ध्यान भटकाने के लिए देश भर में जाति-धर्म के नाम पर दंगे करवाये जा रहे हैं। हम हिन्दू मुसलमान में उलझते हैं तो इसका फ़ायदा सीधे पूँजीपतियों, कारखाना मालिकों, सरकारों, तमाम चुनावबाज़ पार्टियों तथा उनके लग्गू-भगुओं को होता है। 
आम आदमी पार्टी छिपे व खुले तौर पर भाजपा की सारी फ़ासीवादी नीतियों का समर्थन करती है। असल में दोनों ही सरकारें मिलकर ग़रीबों मेहनतकशों को लूटने का काम करती है। इस मक्कार केजरीवाल के घर के बाहर बाइस हज़ार आँगनवाड़ी की महिलाएं शानदार संघर्ष कर रही थीं, अपने बुनियादी हक़ अधिकार के लिए लड़ रही थीं। केजरीवाल सरकार पर महिलाओं के प्रदर्शन का पूरा दबाव था, कि ऐसे में भाजपा के राज्यपाल ने महिलाओं के संघर्ष को कमज़ोर करने के मक़सद से जनविरोधी हेस्मा कानून लगा दिया। और साफ़ ज़ाहिर कर दिया की भाजपा और आम आदमी पार्टी एक ही थाली के चट्टे-बट्टे हैं। हड़ताल के तात्कालिक स्थगन के बावजूद आँगनवाड़ी कर्मियों का ऐतिहासिक संघर्ष आज भी ज़ारी है।

 हमारे आज के कार्यभार 
साथियो! आज हमारे संघर्ष दो क़दमों पर चलेंगे। आर्थिक संघर्ष; जिनमें काम के घण्टे, ईएसआई, ईपीएफ़, न्यूनतम मज़दूरी, सुरक्षा के समुचित इन्तज़ाम, बोनस, वेतन-भत्ते, रोज़गार इत्यादि से जुड़ी माँगों के लिए हमें आन्दोलन संगठित करने होंगे। देश-दुनिया के कौने-कौने में मज़दूर वर्ग अपने आर्थिक संघर्ष लड़ भी रहा है किन्तु अधिकतर जगह पर नेतृत्व समझौतापरस्त है। मज़दूर आन्दोलन में आज अर्थवाद करने वाले और 20-30 परसेंट की दलाली खाने वाले हावी हैं। इनसे पीछा छुड़ाकर स्वतन्त्र क्रान्तिकारी नेतृत्व विकसित करना आर्थिक संघर्षों की जीत की भी पहली शर्त है।

मज़दूर वर्ग का असल संघर्ष उसका राजनीतिक संघर्ष है जो एक शोषणविहीन-समतामूलक समाज व्यवस्था के लिए होने वाला संघर्ष है जिसमें एक इंसान के द्वारा दूसरे इंसान का शोषण न हो सके। मज़दूर वर्ग पूँजीवादी व्यवस्था को उखाड़ फेंककर तथा समाजवादी व्यवस्था कायम करके ही ऐसा कर सकता है। इसके लिए मज़दूर वर्ग को संशोधनवाद, संसदवाद और अर्थवाद से छुटकारा पाना होगा और अपने अन्दर पैठे दलालों और गद्दारों को पहचानना होगा। जब तक पूँजीवाद रहेगा तब तक होने वाले आर्थिक संघर्ष तो साँस लेने के समान हैं किन्तु असल लड़ाई शोषण के हर रूप के खात्मे के लिए होनी चाहिए। इसके लिए हमें अपनी क्रान्तिकारी पार्टी से जुड़ कर उसे मज़बूत करना पड़ेगा। मई दिवस का सच्चा सन्देश यही है कि हम अपने शानदार अतीत से प्रेरणा लेकर भविष्य की दिशा का सन्धान करें। मई दिवस के शहीदों को भी हमारी यही सच्ची श्रद्धांजलि हो सकती है!

दिल्ली इस्पात उद्योग मज़दूर यूनियन

सम्पर्क: 9873868097

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