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Thursday, 21 April 2022

रूसी क्रांति के शिल्पी क्रांतिकारी लेनिन को उनके जन्म दिन पर क्रांतिकारी सलाम! ( 22 अप्रैल 1870 )



आज रूसी बोल्शिक क्रांति के महान शिल्पी व्लादिमीर इलीइच उल्यानोव (लेनिन) का जन्मदिन है। मार्क्स- एंगेल्स ने मेहनकश वर्गों ( सर्वहारा) के राज की समाजवादी-साम्यवादी के रूप में कल्पना की थी। उस कल्पना को जिस व्यक्तित्व के नेतृत्व ने धरती पर व्यवहार में साकार कर दिया गया, उसका महान व्यक्तित्व का नाम लेनिन है।

1917 की रूसी क्रांति मानव इतिहास की अब तक की सबसे बड़ी घटना थी और है। यह एक ऐसा क्रांतिकारी विस्फोट था, जिसकी अनुगूंज दुनिया के हर कोने में सुनी गई। उसके बाद क्रांतियों और क्रांतिकारी संघर्षों का एक सिलसिला चल पड़ा। मानव जीवन का कोई पहलू ऐसा नहीं था, जिसे रूसी क्रांति ने प्रभावित न किया हो। 

सच यह है कि मानव जाति के इतिहास में यह एक ऐतिहासिक छलांग थी।  रूसी बोल्शेविक क्रांति में शामिल और उसके अध्येता सभी एक स्वर से स्वीकार करते हैं कि बिना लेनिन के यह क्रांति संभव नहीं थी।

पश्चिमी यूरोप के उपनिवेशवादियों-साम्राज्यवादियों के कब्जे से दुनिया को देशों को आजाद कराने में इस क्रांति की एक निर्णायक भूमिका रही। जिसमें भारत भी शामिल है।

भारत लंबे समय तक आजादी के बाद साम्राज्यवादियों के चंगुल से मुक्त रहा और अपनी संप्रभुता को बनाए रख सका, इसका बड़ा श्रेय सोवियत संघ की उपस्थिति को जाता है।

पूंजीवादी दुनिया में मेहनकशों के जीवन-स्तर में सुधार का श्रेय भी इस क्रांति को ही सबसे अधिक जाता है,क्योंकि सर्वहारा क्रांति के भय ने पूंजीपतियों को बाध्य कर दिया कि वे अपने देश के मजदूरों के अधिकारों को स्वीकार करें और  मजदूरों के श्रम से कमाए गए धन का एक हिस्सा ही सही मजदूरों पर भी खर्च करें।

इस क्रांति ने स्त्री-पुरुष समानता को क्रांतिकारी मोड़ दिया। इस क्रांति से पहले यूरोप-अमेरिका के तथाकथित अधिकांश ( करीब सभी) देशों में महिलाओं को वोट देने का तक का भी  अधिकार नहीं था। रूसी ने क्रांति के तुरंत बाद महिलाओं को पुरूषो के समान हर क्षेत्र में  अधिकार दिया गया। इसमें वोट का अधिकार भी शामिल था। इसके बाद यूरोप के अधिकांश देशों में महिलाओं को वोट का अधिकार मिला।

इस सबकुछ का सबसे ज्यादा श्रेय यदि  किसी एक व्यक्ति का जाता है, तो उस व्यक्ति का नाम व्लादिमीर, लेनिन है।

आज पूंजीवाद ने न केवल मनुष्य जाति, बल्कि धरती के अस्तित्व को भी गंभीर खतरे में डाल दिया है।

 कोरोना वायरस भी पूंजीवादी लालच-हवस, उपभोक्तावादी संस्कृति और पूंजीपतियों-कार्पोरेट घरानों  के मुनाफे की आकूत चाहत की पैदाइश है। जिसने आज पूरी दुनिया में महामारी का रूप ले लिया है।

न केवल कोरोना के जन्म और विस्तार का कारण पूंजीवाद में निहित,वह इस महामारी को अवसर के रूप में भी भुना रहा है।

पूंजीवाद के विनाश के बिना मनुष्य जाति और धरती को बचाया नहीं जा सकता है।

 भारत में पूंजीवाद ने पूरी तरह ब्राह्मणवाद से मेल कर लिया, यहां हमें दोनों का विनाश एक साथ करना होगा।

विश्वव्यापी स्तर भर पूंजीवाद के खिलाफ और देश के स्तर पर पूंजीवाद-ब्राह्मणवाद गठजोड़ के खिलाफ संघर्ष में लेनिन की विरासत और व्यक्तित्व हमारे लिए एक बड़ी मशाल का काम करेंगे।

दुनिया को सुंदर बनाने की चाह रखने  वाले हर व्यक्ति को लेनिन की जीवनी और विचारों को जरूरी पढ़ना चाहिए।

क्रांतिकारी लेनिन को उनके जन्मदिन पर, क्रांतिकारी सलाम!
*Siddharth Ramu*

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