१९७० तक रामनवमी उत्सव तो क्या रामनवमी जानने वाले ही बहुत कम थे। रामनवमी का जुलूस निकालना उन शहरों से शुरू हुआ जहां सांप्रदायिक दंगे कभी हुए। धीरे-धीरे सांप्रदायिक दंगे की संघी योजना और षड्यंत्र ने इसे अन्य शहरों तक विस्तार दिया। गांव में तो कोई नामलेवा भी नहीं था। पर, आज तो यह स्थिति है कि रामनवमी का उत्सव न मनाने और जुलूस न निकालने वाले शहर , खासकर उत्तर भारत में, बहुत ही कम मिलेंगे। इसकी बढ़ोतरी की तीव्रता बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद तीव्र हुई, जो आज अपने आक्रामक तेवरों से राष्ट्र के लिए सबसे बड़ा खतरा बन गया है। पटना जैसे शहर में भी यह बहुत पुरानी परंपरा नहीं है। यह ज्यादा प्रचारित-प्रसारित किया गया पटना जंक्शन के पास हनुमान मंदिर के जीर्णोद्धार और उसे राममंदिर के रूप में प्रक्षेपित करने के बाद। जैसे-जैसे धर्म का प्रचार-प्रसार और व्यापार बढ़ता गया, वैसे-वैसे इसकी व्यापकता भी बढ़ती गई। आज तो देहातों में भी हरवे-हथियार के साथ आक्रामक जुलूस निकालने की होड़ सी लगी हुई है। इसमें कहीं रत्तीभर भी धार्मिकता न होकर धार्मिक उन्माद है, जिसके माध्यम से बाकी लोगों को डराया जा रहा है। यह देश में डर का माहौल बनाने का सबसे कारगर तरीका हो गया है।
Ram Ayodhya Singh
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