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डा भीम राव अंबेडकर ने कहा था -"मुट्ठी भर लोगों द्वारा बहुसंख्यक जनता का शोषण इसलिए संभव हो पा रहा है कि पैदावार के संसाधनों-जल, जंगल, जमीन, कल-कारखाना, खान-खदान, यातायात के संसाधन, स्कूल, अस्पताल, बैंक आदि पर समाज का मालिकाना नहीं है।" मतलब साफ है की पैदावार के संसाधनों पर जिसका निजी मालिकाना होगा वही शोषण कर सकता है। यदि उत्पादन के साधनों का मालिकाना उसके हाथ में नहीं है तो चाहे वह किसी भी जाति का हो वह शोषण नहीं कर पाएगा।
शोषण से संरक्षण के लिए बाबा साहब डा. अंबेडकर के अनुसार, पैदावार के प्रमुख संसाधन- जल, जंगल, जमीन, स्कूल, अस्पताल, खान-खदान, कल-कारखाना, बैंक, यातायात के संसाधन आदि-सरकारी होना चाहिए। इसे उन्होंने राजकीय समाजवाद कहा था। सही मायने में यही राजकीय समाजवाद, डा. अंबेडकर का सपना था, यही उनका मिशन था। इस मिशन को पूरा करने के लिए सिर्फ बड़े-बड़े धनपतियों से लड़ना था जिनकी संख्या तकरीबन 2 लाख के आस-पास होगी। मगर जातिवादी नेताओं ने 2 लाख धनपतियों से लड़ने की बजाय तकरीबन 22 करोड़ सवर्णों को ललकार दिया। इस प्रकार अनायास ही 22 करोड़ सवर्णों को उन दो लाख दुश्मनों के साथ खड़ा करके उनकी शक्ति बढ़ा दिया ताकि अम्बेडकर का मिशन ही असम्भव हो जाये।
दलितों का मसीहा कहे जाने वाले इन जातिवादी नेताओं ने गाली-ताली के अलावा गरीबों को, खासतौर से दलितों को, कुछ नहीं दिया। अगर दलितों को कुछ मिला है तो क्रांतिकारी शक्तियों के संघर्षों के दबाव में तथा बाबा साहब डॉक्टर अंबेडकर के माध्यम से ही मिला है। इन जातिवादी नेताओं ने कभी आर्य-अनार्य, कभी मूलनिवासी-विदेशी, कभी 15 बनाम 85, की बात कहकर लोगों को भावनात्मक मुद्दों में उलझाये रखा। इन्होंने डा.अम्बेडकर का फोटो चिपका लिया मगर उनका असली मिशन जनता को कभी नहीं बताया तथा उनका असली संविधान जनता से छिपाये रखा, उनके राजकीय समाजवाद को कभी मुद्दा नहीं बनाया, सिर्फ जातिवाद फैलाया और भाजपा जैसी साम्प्रदायिक ताकतों को मजबूत किया। जातिवादियों ने मंच पर अम्बेडकर का फोटो लगाकर सवर्ण जाति के गरीबों को गालियां देने की घिनौनी थुक्का-फजीहत वाली जातिवादी राजनीति करके अम्बेडकर को अपमानित एवं बदनाम किया है।
जातिवादी नेता लोग बाबा साहब अंबेडकर के असली मिशन को छिपाने में इसलिए कामयाब होते रहे क्योंकि हमारे लोग अक्सर फिल्म देखने, क्रिकेट मैच देखने, मोबाइल में गेम खेलने, किताबों में या टेलीविजन के धारावाहिकों में राजा रानी की कहानियां देखने और ताश के पत्ते फेंटने आदि में ज्यादा समय गंवाते हैं, उन्हें मोटे-मोटे ग्रंथों में दिए गए महापुरुषों के क्रांतिकारी विचारों को पढ़ने का समय नहीं मिलता। इसलिए इस छोटी सी पुस्तिका के माध्यम से डॉक्टर अंबेडकर के मोटे ग्रंथों, खासतौर से "बाबा साहब डॉ.अंबेडकर संपूर्ण वांग्मय खंड 2" में दिए गए राज्य और अल्पसंख्यक नाम का संयुक्त राज भारत का संविधान तथा संविधान सभा के वाद-विवाद पुस्तकों में से उनके चुनिंदा आर्थिक विचारों को पढ़कर अम्बेडकर का असली मिशन समझ सकते हैं। जिसको भी राज्य और अल्पसंख्यक में दिए गए बाबा साहेब का असली मिशन संयुक्त राज्य भारत का संविधान और संविधान सभा के वाद-विवाद पुस्तक चहिए वो नीचे दिए गए व्हाट्सएप से ले सकता है।
*अजय असुर*
*राष्ट्रीय जनवादी मोर्चा*
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