*आज से लगभग सौ साल पहले अमेरिकन कवयित्री मिरियम वेडर [Miriam Vedder (1894-1983)] ने एक कविता लिखी थी, चौकीदार। पिछले दिनों टेलीग्राफ़ (कोलकाता) ने इसे पहले पन्ने पर प्रकाशित किया था। देशबंधु अख़बार ने इसका हिंदी अनुवाद छापा।*
तंग-संकरी गलियों से गुजरते
धीमे और सधे कदमों से
चौकीदार ने लहरायी थी अपनी लालटेन
और कहा था - सब कुछ ठीक है
बंद जाली के पीछे बैठी थी एक औरत
जिसके पास अब बचा कुछ भी न था बेचने के लिए
चौकीदार ठिठका था उसके दरवाजे पर
और चीखा था ऊंची आवाज में - सब कुछ ठीक है
घुप्प अंधेरे में ठिठुर रहा था एक बूढ़ा
जिसके पास नहीं था खाने को एक भी दाना
चौकीदार की चीख पर
वह होंठों ही होंठों में बुदबुदाया - सब कुछ ठीक है
सुनसान सड़क नापते हुए गुजर रहा था चौकीदार
मौन में डूबे एक घर के सामने से
जहां एक बच्चे की मौत हुई थी
खिड़की के कांच के पीछे झिलमिला रही थी एक पिघलती मोमबत्ती
और चौकीदार ने चीख कर कहा था - सब कुछ ठीक है
चौकीदार ने बितायी अपनी रात
इसी तरह
धीमे और सधे कदमों से चलते हुए
तंग-संकरी गलियों को सुनाते हुए
सब कुछ ठीक है!
सब कुछ ठीक है!!
सौजन्य: मजदूर बिगुल
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