माइकल जे शाक, 1886 के मई महीने में शिकागो में पुलिस कप्तान तैनात था. ये ही वो व्यक्ति था जो मामले की सारी हकीक़त जानता था, किसने बम फेंका, कैसे मज़दूर नेताओं को उसमें फंसाया गया. शिकागो के क्रांतिकारी मज़दूर नेताओं की गिरफ़्तारी भी उसी की निगरानी में हुई और वो ही उस मामले का मुख्य चश्मदीद गवाह था जिसमें उन क्रांतिकारियों को फांसी की सज़ा हुई. 11 नवम्बर 1887 उन्हें फांसी दिए जाते वक़्त भी वह मौजूद था. उसने रिटायर होकर एक किताब लिखी, 'Anarchy and Anarchists'. ज़ाहिर है वो मालिकों का गुरगा था और क्रांतिकारी मज़दूरों से नफ़रत करता था. अपनी किताब के आखरी अध्याय में माइकल जे शाक लिखता है;
"जज ने अगस्त स्पाइस से पूछा, आपको फांसी कि सज़ा क्यों ना दी जाए, आपको कुछ कहना है? 'मैं एक वर्ग के प्रतिनिधि की हैसियत से दूसरे वर्ग के प्रतिनिधि से बोल रहा हूँ. उसकी आवाज गरिमापूर्ण, ऊँची और चीरती हुई थी...अगर आप लोग सोचते हैं कि हमें फांसी पर लटकाकर आप मज़दूर आन्दोलन को कुचल देंगे तो आओ, आगे बढ़ो, हमें फांसी पर लटका दो. .. सतह के नीचे एक ज्वाला धधक रही है जिसे आप और आपका निज़ाम बुझा नहीं पाएगा...मेरे विचार मुझे बहुत प्रिय हैं, मैं उन्हें नहीं छोड़ सकता. अगर सच बोलने की सज़ा फांसी है तो हमें मंज़ूर है. मैं ख़ुशी से ये क़ीमत चुकाने को तैयार हूँ...बुलाओ अपने जल्लाद को. सच्चाई के लिए फांसी चढ़े सुकरात, ईसा मसीह, गिओरदानो ब्रूनो, गैलिलिओ आज भी जिंदा हैं. हमें ये रास्ता इन्होने और इनके जैसे अनेक क्रांतिकारियों ने दिखाया है और हम ख़ुशी से इस रास्ते पर चलने को तैयार हैं.."
मई दिवस जिंदाबाद
शिकागो के अमर शहीदों को लाल सलाम
दुनिया के मजदूर एक हो
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