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लेनिन पूरे तौर से एक क्रांतिकारी मार्क्सवादीऔर सामूहिकतावादी थे। उनका सारा जीवन और कार्य एक ही महान् लक्ष्य के लिए अर्पित था - समाजवाद को विजयी बनाने के लक्ष्य के लिए। इसकी छाप उनके समस्त विचारों और भावनाओं पर थी। उस क्षुद्रता, निकृष्ट ईर्ष्या, क्रोध, प्रतिशोध-भाव, मिथ्या अहंकार और आडंबर का उनमें लेशमात्र भी चिन्ह नहीं था जो छोटी सम्पत्तिवादी मनोवृत्ति रखने वाले व्यक्तिवादियों में इतनी प्रचुरता से पाया जाता है।
लेनिन डटकर लड़ते थे, वे तीखे सवाल पूछते थे ; बहस के दौरान कभी कोई व्यक्तिगत चीज वे नहीं उठाते थे , बल्कि प्रश्नों पर सदैव विषय के महत्व के अनुसार विचार करते थे ; और यही वजह थी कि साथी उनके तीखे ढंग का अक्सर बुरा नहीं मानते थे । वे लोगों को बहुत नजदीक से समझने की कोशिश करते थे , उनको जो कुछ कहना होता था उसे सुनते थे , उनकी बात के सार का समझने की चेष्टा करते थे और इसीलिए महत्वहीन बातों की भूल-भुलैयों के बीच भी आदमी की असलियत को हृदयंगम करने में वे सफल हो जाते थे। लोगों के साथ वे अद्भुत संवेदना के साथ बातें करते थे, और उनके अंदर उस चीज को ढूंढ लेते थे जो कल्याणकारी और मूल्यवान होती थी और जिसका सामान्य लक्ष्य के हित में उपयोग किया जा सकता था।
मैं अक्सर देखती थी कि इलिच से मिलने के बाद लोग बदल जाते थे , और इसकी वजह से साथी इलिच से प्रेम करते थे और इलिच खुद भी लोगों के साथ अपनी मुलाकातों के जरिए जितना ज्ञान प्राप्त कर लेते थे उतना बहुत ही कम लोग कर सकते थे । जीवन से, दूसरे लोगों से, हर कोई नहीं सीख सकता। पर इलिच जानते थे कि उनसे कैसे सीखा जाये। लोगों के साथ बातचीत में दांवपेंच , अथवा कूटनीति का वे कभी नहीं इस्तेमाल करते थे; वे उनके साथ छल - कपट कभी नहीं करते थे, और उनकी सच्चाई तथा स्पष्टवादिता को लोग समझते थे।
अपने साथियों का वे बेहद ख्याल रखते थे । चाहे वे जेल में हों, चाहे बाहर , चाहे जलावतनी की हालत में, चाहे प्रवास में, और चाहे उस समय जबकि जन मंत्री परिषद के वे अध्यक्ष निर्वाचित हो चके थे, अपने साथियों की उन्हें हमशा फिक्र रहती थी। वे केवल अपने साथियों की ही नहीं , बल्कि ऐसे सर्वथा अपरिचित लोगों की भी फिक्र रखते थे जिन्हें उनकी सहायता की जरूरत होती थी। इलिच का एकमात्र पत्र जो मेरे पास बच रहा है उसमें निम्न शब्द लिखे है : " सहायता के लिए तुम्हारे पास कभी-कभी जो पत्र आते हैं उन्हें मैं पढ़ता हूं और उनके संबंध में जो भी संभव होता है उसे करने की कोशिश करता हूं ।" यह 1919 के ग्रीष्म काल की बात है , उस समय की जिस समय कि इलिच के पास फिक्र करने के लिए जरूरत से ज्यादा चीजें थीं। गृह - युद्ध चरम शिखर पर था। उसी पत्र में उन्होंने लिखा था: " लगता है कि श्वेत गाडों ने फिर क्राइमिया पर कब्जा कर लिया है।" उनके हाथ काम से बुरी तरह भरे रहते थे, किंतु लोगों की मदद करने का सवाल जब भी उठा इलिच को यह कहते कभी मैंने नहीं सना कि उनके पास समय नहीं है।
वे मुझसे हमेशा कहते रहते थे कि जिन साथियों के साथ मैं काम करती थी उनका मुझे और अधिक ख्याल रखना चाहिए; और, एक बार, पार्टी मेम्बरों की काट - छांट तथा सफाई के दौर में जन शिक्षा मंत्रालय के मेरे एक कार्यकर्ता पर जब अन्यायपूर्ण ढंग से हमला किया गया था, तो समय निकालकर पुराने प्रकाशनों की उन्होंने खुद जांच पड़ताल की थी और ऐसी सामग्री ढूंढ निकाली थी जो इस बात की पुष्टि करती थी कि उक्त कार्यकर्ता ने अक्टूबर से पहले भी, जब वह ' बुंद ' का सदस्य था, बोल्शेविकों की ही हिमायत और तरफदारी की थी।
कुछ लोग कहते हैं, लेनिन दयालु थे। किन्तु ' पुण्य ' की पुरानी शब्दावली से लिया गया यह ' दयालु ' शब्द इलिच के स्वभाव से मेल नहीं खाता, वह कुछ अपर्याप्त और त्रुटिपूर्ण लगता है।
पारिवारिक जत्थेबंदी अथवा दलबंदी की भावना, जो उन पुराने दिनों में इतनी आम थी, इलिच में बिल्कुल नहीं थी। व्यक्तिगत को सामाजिक से कभी वे अलग नहीं रखते थे। उनके जीवन में वह सब एक ही चीज थी। ऐसी किसी स्त्री से कभी वे प्रेम न कर पाते जिसके विचार स्वयं उनके विचारों से भिन्न होते, जो काम में उनकी सहयोगिनी न होती। लोगों के साथ वे गहरी मित्रता के बंधनों में बंध जाते थे। प्लेखानोव के प्रति, जिनसे उन्होंने इतना कुछ सीखा था, उनकी अनुरक्ति इस चीज की एक अच्छी मिसाल थी, किंतु जब उन्होंने देखा कि प्लेखानोव गलती कर रहे हैं, उनका दृष्टिकोण लक्ष्य को नुकसान पहुंचा रहा है तो उनकी यह अनुरक्ति प्लेखानोव के खिलाफ निर्मम संघर्ष छेड़ने के मार्ग में कभी बाधा न बन सकी; प्लेखानोव जब सुरक्षावादी बन गये तो उनके प्रति इलिच का प्रेमभाव उनसे पूर्णरूप से संबंध विच्छेद करने के मार्ग में बाधक न बन सका।
सफल काम को देखकर इलिच को बहुत खुशी होती थी । लक्ष्य प्राप्ति के लिए किया जाने वाला काम ही उनके जीवन का मुख्य संबल था, वही वह चीज थी जिससे वे मुहब्बत करते थे और अत्यधिक प्रभावित होते थे । लेनिन आम लोगों के अधिक से अधिक नजदीक पहंचने की कोशिश करते थे और इसमें वे कामयाब भी होते थे। मजदूरों के साथ नजदीकी संबंध रखने से उन्हें अत्यधिक बल मिलता था। इसकी वजह से सर्वहारा वर्ग के संघर्ष के संबंधित कामों की हर मंजिल में उन्हें वास्तविक समझदारी प्राप्त होती रहती थी। यदि हम ध्यानपूर्वक अध्ययन करें कि अध्ययनार्थी के रूप में, प्रचारक के रूप में, विद्वान के रूप में, संपादक और संगठनकर्ता के रूप में लेनिन किस प्रकार काम करते थे, तो मानव के रूप में भी हम उन्हें अच्छी तरह समझ जाएंगे।
- एन. क्रुप्सकाया (1869-1939)
(रूसी क्रांतिकारी व राजनीतिज्ञ, लेनिन की जीवनसाथी)
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PSO: Progressive students organisation
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