ऐसे ही अमानवीय जातिवादी सामंतियो को प्राचीन काल से नायक बनाने की भारतीय इतिहास में परंपरा चली आ रही है. अपनी अस्मिता लूटने वालों को मौत के घाट उतारने वाली फूलन देवी को यहाँ दुर्गा अवतार इसलिये घोषित नहीं किया जायेगा क्योंकि वो मनुवादी वर्णव्यवस्था मे उपर की दो जातियों(ब्राह्मण या क्षत्रिय) मे नहीं आती. अपितु चौथे शूद्र वर्ग मे आती हैं. और उनके साथ कई दिनों तक ब्लातकार करने वाले ठाकुर/क्षत्रिय समाज के थे. जिन्हें मारकर फूलन ने अपना बदला लिया था.
कायर शेर सिंह राणा जो उस स्थान से भी नहीं आता जहाँ ये घटना घटी थी. लेकिन जाति की भावना मे बहकर उसने फूलन देवी की धोखे से हत्या कर दी. इस कुकर्म को क्षत्रिय समाज ने अपने अपमान का प्रतिशोध समझकर शेर सिंह को हर आर्थिक, कानूनी सहायता प्रदान कर उसे बचा लिया. भाजपा के एक ठाकुर नेता ने उससे अपनी कन्या ब्याह दी. अब भी मन नहीं भरा था तो पूरे बहुजन समाज(दलित, पिछड़े, अदिवासी) को और सामंतवादी जूता भिगोकर मारने के लिए ये फिल्म ही बनवा दी. क्योंकि इन्हें पता है बहुजनों का अधिकांश हिस्सा हिंदू बनकर लात खाने और मंदिर से भगाने पर भी बहुत खुश है.
याद कीजिये जब 'पद्मावत' फिल्म आई थी तो राजपूत सेना, करणी सेना सहित बहुत से सामंती संगठनों ने देश भर इस फिल्म के विरोध में ताण्डव किया था. और तर्क दिया था कि इससे राजपूत समाज की भावनाएं आहत हुई हैं. दीपिका पादुकोण के नाक काटने पर करोड़ों के ईनाम की इन्हीं संगठनों ने घोषणा की थी. भारत सरकार और अन्य कुछ राज्यों की सरकारों का इन्हें मौन समर्थन प्राप्त था.
क्या आज बहुजन समाज(पिछड़े, दलित, शोषित, आदिवासी) की भावनाएं इससे आहत नहीं होंगी?? यही समाज तो भारत मे बहुसंख्यक है. यदि बहुजनों ने इसका बहिष्कार कर दिया तो फिर किसी खुरापाती फिल्म निर्माता ऐसा अमानवीय निर्णय नहीं लेगा.
✍️Shiva Nand Yadav
(शोधछात्र, गोरखपुर विश्वविद्यालय, गोरखपुर)
No comments:
Post a Comment