मई दिवस का पैगाम, जारी रखना है संग्राम!
[बांग्ला पर्चा]
अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस की क्रांतिकारी विरासत और पूंजीवादी शोषण के खिलाफ संघर्ष को आगे बढ़ाएं!
अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस अमर रहे!
दुनिया के मज़दूरों, एक हो! पूंजीवाद-साम्राज्यवाद मुर्दाबाद!
साथियों,
1 मई को अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस है, यानी मजदूर वर्ग का सबसे खास दिन व त्योहार। यह ऐतिहासिक दिवस पहली मई को पूरी दुनिया के कोने-कोने में मजदूरों द्वारा रैली, प्रदर्शन, सभा, मीटिंग के रूपों में मनाया जाएगा। मई दिवस पूंजीवादी शोषण और गुलामी के खात्मे तक मजदूर वर्ग के संघर्ष को जारी रखने के संकल्प को दोहराने का दिन है। मई दिवस का इतिहास हमें यह याद दिलाता है कि '8 घंटे का कार्य-दिवस' के साथ मजदूरों के सभी अधिकार कोई तोहफे या खैरात में नहीं मिले थे, बल्कि लड़कर जीते गए जिसके लिए मजदूर वर्ग को बड़ी कुर्बानियां देनी पड़ी हैं। मई दिवस इसका भी परिचायक है कि जब मजदूर वर्ग एकजुट और सचेत हो जाता है, तो वह बड़ी से बड़ी लूटेरी शक्तियों को चकनाचूर कर सकता है। इसलिए पूंजीपति वर्ग ने कभी नहीं चाहा कि मजदूर वर्ग मई दिवस के बारे में जाने और इसके लिए अपने गुर्गों (सरकारों, मीडिया, संस्थाओं, प्रचारकों आदि) द्वारा मई दिवस के इतिहास को भिन्न तरीकों से छुपाया है।
मई दिवस की क्रांतिकारी विरासत
संघर्ष की शुरुआत : मई दिवस की शुरुआत आज से डेढ़ सौ साल पहले होती है जब पूरी दुनिया में मजदूरों के काम की कोई समय-सीमा तय नहीं थी और उन्हें 14-16 घंटे तक काम करवाया जाता था। इसके खिलाफ पूरी दुनिया, खास कर अमेरिका, यूरोप, ऑस्ट्रेलिया, में कई सालों से छोटे-बड़े आंदोलन हो रहे थे। लेकिन अमेरिका के मजदूरों ने पहली बार '8 घंटे काम' की मांग पर अक्टूबर 1884 में एक सम्मलेन आयोजित किया जिसमें 1 मई 1886 से 8 घंटे काम को लागू करवाने का दिन चुना गया।
उसी 1 मई से मई दिवस की लड़ाकू शुरुआत हुई जब पूरे अमेरिका के 4-5 लाख मजदूर '8 घंटे काम, 8 घंटे आराम, 8 घंटे मनोरंजन' की मांग पर आर-पार की हड़ताल पर चले गए। हड़ताल के पूर्व ही पूंजीपति वर्ग का विरोध चरम पर था। पूरे अमेरिका में हथियारबंद पुलिस तैनात कर दी गर्इं। अखबारों द्वारा आंदोलन के खिलाफ कुत्साप्रचार अभियान शुरू किया गया। मजदूर नेताओं को अपराधी और गुंडा कहा गया। हड़ताली मजदूरों को नौकरी से निकाल देने और सजा देने का फरमान जारी हुआ। इन सबके बावजूद हड़ताल पूरी तरह सफल रही।
3 मई को मजदूरों की एकता से बौखलाए पूंजीपतियों ने जवाबी हमला करते हुए मैककौर्मिक हार्वेस्टर वर्क्स के हड़ताली मजदूरों पर गोलियां चलवा दीं जिसमें 6 मजदूर शहीद हो गए और कई घायल हुए। इससे मजदूरों का गुस्सा भड़क उठा। इसके खिलाफ 4 मई को आंदोलन के केंद्र, शिकागो शहर, के हेमार्केट स्क्वायर चौक पर एक बड़ी मजदूर सभा का आयोजन किया गया। लेकिन सभा के दौरान ही भीड़ में छुपे पूंजीवादी दलालों ने षड्यंत्र के तहत चौक पर बम फेंक दिया जिसमें 4 मजदूर और 7 पुलिसवाले मारे गए। यह होते ही पुलिस को गोलियां बरसाने का खुला मौका मिल गया जिसमें 200 मजदूर घायल हुए और कई मारे गए।
इसी के साथ पूंजीपति वर्ग का खूनी तांडव शुरू हो गया। 8 प्रमुख मजदूर नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया। इनमें से 7 को फांसी की सजा सुनाई गई। अंततः 11 नवंबर 1887 को आनन-फानन में बिना सबूत के 4 नेताओं (जॉर्ज एंगेल, एडोल्फ फिशर, ऐल्बर्ट पार्सन्स, अगस्त स्पाइस) को फांसी दे दी गई। 7 साल बाद वहां के नए गवर्नर ने पूरे कानूनी प्रकरण को बेबुनियादी व अन्यायपूर्ण बताते हुए बाकी कैद नेताओं को रिहा कर दिया, परंतु निर्दोष मजदूर नेताओं को फांसी देने के लिए किसी को भी दोषी नहीं ठहराया गया। यही है पूंजीवादी न्याय, जो मजदूरों के लिए हमेशा अन्याय ही होता है!
मई दिवस अंतर्राष्ट्रीय बन गया : अमेरिका के इस आंदोलन से उठी चिंगारी जल्द पूरी दुनिया में फैल गई। 1889 में मजदूरों के अंतरराष्ट्रीय संगठन 'द्वितीय इंटरनेशनल' का गठन पेरिस में हुआ जिसके स्थापना सम्मेलन में सभी देशों में 1 मई को 'अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस' के रूप में मनाने का निर्णय लिया गया। 1 मई 1890 को '8 घंटे काम' की मांग पर कई देशों में जबरदस्त प्रदर्शन हुए। तब से संघर्ष का यह सिलसिला आगे बढ़ता रहा, 8 घंटे काम के साथ तमाम कानूनी हक मजदूरों ने हासिल किए। संघर्षों से मजदूरों में जो चेतना पैदा हुई, उससे मजदूर वर्ग की विचारधारा और परिपक्व हुई, तथा दुनिया भर में मजदूर वर्ग की पार्टियां बनीं। सन् 1917 में रूस के मजदूरों ने अपनी बोल्शेविक पार्टी के नेतृत्व में अक्तूबर क्रांति कर पूंजीवादी सत्ता को पलट कर मजदूरों का राज तक स्थापित किया, और धीरे-धीरे दुनिया के एक चौथाई हिस्से पर मजदूर वर्ग की सत्ताएं काबिज हुईं। तब से लेकर आज तक 1 मई दुनिया भर के मजदूरों के बीच एकता और पूंजीपति वर्ग के खिलाफ मुक्तिकामी संघर्ष का प्रतीक दिवस बना हुआ है।
मजदूर वर्ग पर आज लगातार बढ़ते हमले
136 साल के उतार-चढ़ाव भरी एक लम्बी यात्रा से गुजरते हुए मई दिवस आज एक बेहद मुश्किल समय में उपस्थित है। जैसे-जैसे मजदूर आंदोलन पीछे हटता व बिखराव की ओर बढ़ता चला गया, वैसे-वैसे ही पूंजीपति वर्ग अपने हमले बढ़ाता रहा। मई दिवस की परंपरा 8 घंटे काम की मांग से शुरू हुई थी, लेकिन आज कम वेतन पर काम के घंटे 12 से 14 होना भी आम बात हो गई है। एक तरफ बेरोजगारी नए रिकॉर्ड तोड़ रही है, तो दूसरी तरफ आज हर सेक्टर में ठेका प्रथा लागू है जिसमें नौकरी की कोई सुरक्षा नहीं है। कई संस्थाओं में फिक्स-टर्म रोजगार (यानी एग्रीमेंट के तहत कुछ समय के लिए काम पर रख कर निकाल देना) तथा हायर व फायर नीति लागू है। छंटनी-बंदी का नया दौर गति पकड़ चुका है जिसमें परमानेंट मजदूर भी सुरक्षित नहीं रहे। यही नहीं, मोदी सरकार ने महामारी व लॉकडाउन के बीच "आपदा को अवसर" में बदलते हुए 44 श्रम कानूनों को ध्वस्त कर 4 नए श्रम कोड ले आए जो पूरी तरह से मजदूर-विरोधी और मालिक के पक्ष में हैं। इनके लागू होते ही हायर-फायर व्यवस्था लागू होगी, ठेका प्रथा और मजबूत बनेगी, मालिक मनमानी छटनी-गेटबंदी कर पाएगा, यूनियन बनाने व एकजुट संघर्ष का अधिकार खत्म हो जाएगा, 8 घंटे और न्यूनतम वेतन के कानून भी समाप्त हो जाएंगे आदि।
एक तरफ जहां महंगाई आसमान छू रही है, वहां वेतन में नाम-मात्र बढ़ोतरी होती है। सरकारी संपत्तियों व कंपनियों (जैसे रेल, विमान, एयरपोर्ट, बैंक, LIC, BSNL, कोयला, बिजली, तेल-गैस, स्टील आदि) को सरकार अपने आकाओं (पूंजीपतियों) को औने-पौने दामों पर सौंप रही है। मोदी सरकार ने रक्षा उपकरण बनाने वाली ऑर्डिनेंस फैक्ट्रियों को भी 7 निगमों में बांट कर निजी हाथों में सौंपने की तैयारी कर ली है। इसके खिलाफ जब कर्मचारी हड़ताल पर गए तो सरकार ने उसपर 'एस्मा' यानी आवश्यक सेवा अनुरक्षण कानून लागू कर हड़ताल को गैर-कानूनी बना दिया।
आज मई दिवस का महत्व
आज पूरी विश्व पूंजीवादी व्यवस्था गंभीर संकट में फंस गई है। मजदूरों के शोषण से पैदा होने वाले इसके मुनाफे का पहिया रुक गया है। इसी कारण से यह अब मजदूर वर्ग के खून-पसीने का आखिरी कतरा तक चूस लेने के लिए बेताब है, और इसलिए मजदूर अधिकारों पर हमले बढ़ते जा रहे है। यही नहीं, असली मुद्दों पर से ध्यान भटकाने तथा हमारी एकता तोड़ने के लिए आज पूंजीपतियों की ये सरकारें पूरे देश में सांप्रदायिक जहर फैला कर जगह-जगह पर दंगे करवा रही है। मीडिया को भी आग भड़काने के काम में लगा दिया गया है। आम सरकारों से बात नहीं बनी तो अब फासीवादी व घोर मजदूर विरोधी भाजपा सरकार को लाया गया है जो कि मेहनतकश जनता के हक और न्याय की आवाज उठाने वालों पर फर्जी मुकदमे थोप कर उन्हें गिरफ्तार कर ले रही है। जनांदोलनों पर लाठी-डंडा-बंदूक चलाना आम हो गया है। और तो और, मुनाफाखोरी के चलते साम्राज्यवादी ताकतों के बीच युद्ध की स्थिति बन गई है, जिसका दंश आज यूक्रेन की आम जनता झेल रही है। परंतु फिर भी पूंजीवादी मुनाफे का पहिया बढ़ नहीं पा रहा। यह साबित कर रहा है कि पूंजी का साम्राज्य बहुत दिनों का मेहमान नहीं है। इसे उखाड़ फेंक कर मजदूरों का राज यानी बराबरी, भाईचारे पर टिका शोषणविहीन समाज, जिसे समाजवाद कहते हैं, स्थापित करने के लिए बस जरूरत है तो मजदूर वर्ग के एकजुट होकर इसे आखिरी धक्का मारने की।
हम तमाम मजदूरों से अपील करते हैं कि वे मई दिवस के दिन इसकी क्रांतिकारी विरासत को ज्यादा से ज्यादा मजदूरों तक पहुंचाने के लक्ष्य से अपने बस्तियों-कॉलोनियों, कार्यस्थलों, नुक्कड़-चौकों आदि पर जुलूस-रैली, जुटान-प्रदर्शन, मीटिंग-सभा का आयोजन करें। इसकी तैयारी के लिए पर्चे बांटे, पोस्टर साटें, मीटिंग आदि करें। आइए पहली मई को मई दिवस के शहीदों को याद करते हुए संकल्प लें! आठ घंटे काम सहित मजदूर वर्ग को अधिकार विहीन बनाने के कुचक्रों (जैसे लेबर कोड) के खिलाफ वर्गीय एकता कायम करते हुए, हमारे शोषण पर टिकी पूंजीवादी व्यवस्था के खिलाफ मेहनतकश वर्ग की मुक्ति के लिए निर्णायक संघर्ष खड़ा करें!
क्रांतिकारी अभिवादन के साथ,
आई.एफ.टी.यू. (सर्वहारा)
PDYF - Progressive Democratic Youth Federation
कन्हाई बरनवाल, महासचिव, आईएफटीयू (सर्वहारा) द्वारा यूनियन कार्यालय, हरिपुर, पश्चिम बर्धमान, प. बंगाल से जारी।
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