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Thursday, 14 April 2022

बाबा साहेब का सपना ---------------------------


जब चुगे दाना चिड़िया, दूर तक कोई जाल न हो
इंसानी देह  के  ऊपर, भेड़िये  की  खाल  न  हो। 

सच तो सच होता है,उससे क्या सवाल करें हम
धर्म की आड़ में कोई,  ईश्वर  का  दलाल  न हो। 

भय,भूख और गरीबी,है चरम पर आज छाई
और कहते हो की तुम ईश्वर पर सवाल न हो? 

मिले न्याय सभी को बराबर,अन्यायी को मिले सजा
संविधान के साये में कोई, बेबस  और  लाचार न हो। 

विषमता की लग्गी हट जाये, इतनी मिट्टी पट  जाये
मिले सहज सभी को फल,कंधे से ऊपर डाल न हो। 

गर हमसे भूलें  भी  हो, जलें  तो  केवल  चूल्हे  हों
सबके हों सौगात भरे, किसी की खाली थाल न हो। 

मिले अधिकार,हक- हुकुम, हो उनकी हिस्सेदारी भी
सहानुभूति के चाकू से अब, स्त्री कोई  हलाल  न हो। 

गरीबों की पगड़ी गेंद न हो, इज्ज़त पर कहीं सेंध न हो 
न्याय रखैल बन जाये, इतना भी कोई मालामाल न हो

गल जाये खड्ग,भाल-ढाल सब, प्रेम की दहकती भट्टी में
किसी पीठ के पीछे यारों, जाति  का  फेका  भाल  न  हो। 

वंचनाओं  का  दंश  झेले,   मगरमच्छ   उससे   खेले
रह पानी पर पी न सके, उस मछली वाला हाल न हो। 

उठो  जगो, संगठित  बनो,  संघर्षों  के  आदी   बनों
क्रान्तिकाल के इस बेला में, कछुए वाली चाल न हो। 

सपना उनका स्वर्ग से सुन्दर, मानवता का पाठ पढ़े हम
मिल आपस में साथ रहें और दिलों में कोई मलाल न हो। 

इंसानी देह के ऊपर, भेड़िये की खाल न हो..... 

~बच्चा लाल 'उन्मेष'

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