अगर हम उनकी मूलनिवासी/विदेशी अथवा आर्य/ अनार्य की थ्योरी सही मान लें, उनके कहे अनुसार यह भी मान लें कि 4000 साल पहले मूलनिवासियों को हराकर विदेशी आर्य आक्रमणकारियों ने उन्हें गुलाम बनाया और खुद शासक/शोषक बन गये। तो भी मूलनिवासी बनाम विदेशी का मामला फ्राड ही दिखाई देता है। क्योंकि शोषक वर्ग अक्सर शोषित पीड़ित वर्ग की बहन बेटियों के साथ बलात्कार करता था और शोषित-पीड़ित लोग हरवाही-चरवाही, करते-करते अक्सर शोषक वर्ग की महिलाओं से प्यार कर बैठते थे। इस प्रकार बीते 4000 साल से प्यार और बलात्कार का सिलसिला चला रहा है। ऐसे में कोई धूर्त आदमी ही डीएनए के आधार पर किसी को मूलनिवासी या विदेशी होने का दावा कर सकता है।
अम्बेडकर इस मूलनिवासी थ्योरी के खिलाफ थे(पढ़ें सम्पूर्ण वांग्मय खण्ड 13 - 14 की भूमिका)
मगर धूर्तों की धूर्तता देखिये, उसी अम्बेडकर का फोटो लगा कर ये नमक हराम लोग अम्बेडकर के विचारों के विरुद्ध बोल रहे हैं।
अनुभव की ऊनचाइयों पर पहुंचकर अम्बेडकर ने तो यह कहा था कि- "मुट्ठी भर लोगों द्वारा बहुसंख्यक जनता का शोषण इसलिए संभव हो पा रहा है कि उत्पादन के संसाधनों पर मुठ्ठी भर लोगों का मालिकाना है।" इसका मतलब अमीर बनाम गरीब की लड़ाई होना चाहिये।
मगर अम्बेडकर के इन विचारों के विरुद्ध धूर्तों की चाल देखिये- वे एक तथाकथित विदेशी नस्ल के खिलाफ तथाकथित मूलनिवासी की लड़ाई की लड़ाई की लफ्फाजी कर रहे हैं।
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