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Friday, 8 April 2022

राजकीय मॉडल संस्कृति स्कूल का मतलब शिक्षा का बाजारीकरण। 'एक सामान- स्‍कूली व्‍यवस्‍था' लागू की जाए।



 पिछले दिनों हरियाणा में खट्टर सरकार ने शिक्षा के बाजारीकरण के लिए एक ओर कदम उठाया। ज्ञात हो कि हरियाणा प्रदेश में मॉडल संस्कृति स्कूल में छात्रों से एडमिशन फीस व हर माह फीस का प्रावधान किया गया है जो सीधे से तौर  से 'शिक्षा अधिकार अधिनियम 2009' के तहत मिलने वाली मुफ्त शिक्षा के अधिकार का उल्लघंन है। हम जानते है कि 'शिक्षा अधिकार अधिनियम-2009' की धारा (3) में 6-14 वर्ष की उम्र के प्रत्येक बच्चे को अपने पड़ोस के स्कूल (नेबरहुड स्कूल) में निशुल्क व अनिवार्य प्रारम्भिक शिक्षा पाने का पूरा अधिकार है। साथ ही धारा (6) में भी स्पष्ट किया है कक्षा 1-5 तक के लिए 1 किलोमीटर के दायरे में स्कूल स्थापित करना सरकार की जिम्मेदारी है।
दूसर बात इन स्कूल में एडमिशन की शर्त है कि छात्रों को  केवल अंग्रेजी  माध्यम से ही पढ़ाई करनी होगी। ये नियम भी सरकार की नयी शिक्षा नीति का उल्लघंन करता है क्योंकि एक तरफ  तो नयी शिक्षा नीति के तहत मातृ/ क्षेत्रीय भाषाओं में बुनियादी शिक्षा देने की बात की जाती है दूसरी तरफ अंग्रेजी माध्यम थोप कर छात्रों को मातृ भाषा में पढ़ने से वंचित किया जा रहा है। 
यानी जो परिवार फीस नहीं दे सकता है या जो बच्चेे अंग्रेजी माध्यम में नहीं पढ़ना चाहते। उन छात्रों से सरकार शिक्षा के अधिकार को छीन रही है। 
ऐसे में नौजवान भारत सभा मांग करता है कि-
1. मॉडल संस्कृति स्कूलों में फीस व अंगेजी माध्य्म की बाध्य्ता खत्म की जाए।
2. सरकार द्वारा संचलित सभी स्कूल में 'एक सामान -स्कूल' की व्यवस्था की जाए।
3. शिक्षा के बजट में बढ़ोत्तरी की जाए।
4.  सभी शिक्षकों, स्टाफ की भर्ती व उनको पक्का किया जाए।


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