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Tuesday, 26 April 2022

चिंता - - वरवर राव


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मैंने बम नहीं बाँटा था
ना ही विचार
तुमने ही रौंदा था
 चींटियों के बिल को
नाल जदेक जूतों से ।

रौंदी गयी धरती से
तब फूटी थी प्रतिहिंसा की धारा

मधुमक्खीयों के छत्तों पर
तुमने मारी थी लाठी
अब अपना पीछा करती मधुमक्खीयों की गूँज से
काँप रहा है तुम्हारा दिल ।

आँखों के आगे अंधेरा है
उग आए हैं तुम्हारे चेहरे पर भय के चकत्ते ।

जनता के दिलों में बजते हुए
 विजय- नगाड़ों को
तुमने समझा था मात्र एक ललकार और
तान दीं उस तरफ़ अपनी बंदूक़ें
अब दसों दिशाओं से आ रही है
क्रांति की पुकार ।
                                

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