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जो लोग आज भी जनवादी या नव जनवादी क्रांति, भूमि-सुधार आंदोलन आदि को एजेंडा बनाए हुए हैं उनके लिए अंबेडकर को आगे रखना आसान होगा लेकिन जो लोग विश्व पूंजीवाद और उससे जुड़े भारतीय पूंजीवाद को प्रहार के मुख्य बिंदु के रूप में देखते हैं उनके लिए अंबेडकर के विचारों से कोई भी रोशनी नहीं मिलती है क्योंकि, अंबेडकर कभी भी निजी संपत्ति के खात्मे, उत्पादन के तमाम संसाधनों के समाजीकरण तथा सर्वहारा वर्ग की तानाशाही के समर्थक नहीं थे। यह समझना मुश्किल नहीं है कि माओवादियों के हमदर्द-कार्यकर्ता क्यों अंबेडकराइटों की पूँछ में कंघी करते रहते हैं, चुनावी कम्युनिस्टों का तो कहना ही क्या, उनके तो वे आराध्य देव हैं ही क्योंकि भावनात्मक तुष्टीकरण के आधार पर उन्हें दलितों का वोट चाहिए और बिहार में उन्हें मिलता भी है।
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