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Wednesday, 27 April 2022

दर्द - तेजू भगत




मेहसूस किया मैंने कल,
दर्द को बहुत करीब से,
अधमरे चेहरे पे, अभाव बन के उभरते हुए,
खुरदुरी हथेली से, बोझ बनके चिपकते हुए,
सख्त पड़ चुके एड़ियों में बेबसी बन के चुभते हुए,
छिल गए घुटनों से अनिश्चितता बन के रिस्ते हुए,
धस चुके पेट को, भूख बन के कुरेदते हुए,
थक चुके शरीर को, " विकाश" बन के रौंदते हुए,

दर्द मनों ठहर सा गया था कल,
मेरे आंखों के सामने, जम सी गई थी सभी संवेदनाएं,
उस पल सब कुछ रुक सा गया था,
और फिर देखा मैंने
 इस ववस्था के चीथड़े  में लिपटे,
कुछ लोग, चले जा रहे थे,
अपने अपने घर की ओर,
एक अनवरत और अंतहीन शून्य की ओर,
दर्द से तरबतर।

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