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Friday, 29 April 2022

मजदूर वर्ग की राजनीतिक क्रिया के बारे में


( 21 सितंबर 1871 को अंतरराष्ट्रीय मजदूर संघ के लंदन सम्मेलन में दिया गया भाषण)
                                --    फ्रेडरिक एंगेल्स
राजनीतिक क्रिया से सर्वथा विरत रहना असंभव है । विरतिवादी समाचार पत्र रोजाना राजनीति में भाग लेते हैं । प्रश्न केवल यह है कि आप राजनीति में कैसे भाग लेते हैं और किस प्रकार की राजनीति में भाग लेते हैं । बाकी बात यह है कि हमारे लिए राजनीति से विरत रहना असंभव है । अब तक अधिकांश देशों में मजदूर वर्ग की पार्टी राजनीतिक पार्टी के रूप में कार्य करने लगी है , और हमारा काम यह नहीं है कि राजनीति से विरत रहने का प्रचार करके उसे चौपट कर डालें । जीवंत अनुभव , मौजूदा सरकारों का राजनीतिक उत्पीड़न मजदूरों को राजनीति में दखल देने के लिए विवश करता है , चाहे वे इसे चाहें या न चाहें , चाहे वे ऐसा राजनीतिक लक्ष्यों के लिए करें या सामाजिक । उन्हें राजनीति से विरत रहने का उपदेश देकर हम उन्हें पूंजीवादी राजनीति के जाल में फंसा देंगे । पेरिस कम्यून के बाद , जिसने सर्वहारा की राजनीतिक क्रिया को  आज की कार्यसूची में दाखिल कर दिया , राजनीति से विरत रहने का सवाल ही पैदा नहीं होता । 
हम वर्गों का उन्मूलन चाहते हैं । इसे पूरा करने का क्या साधन है ? इसका एकमात्र साधन सर्वहारा का राजनीतिक प्रभुत्व है। फिर भी अब , जब सभी इस बात को मानते हैं , हमसे कहा जाता है कि हम राजनीति में दखल न दें ! विरतिवादी कहते हैं कि वे क्रांतिकारी हैं , यहां तक कि सर्वश्रेष्ठ क्रांतिकारी हैं । लेकिन क्रांति राजनीतिक क्रिया की पराकाष्ठा है और जो लोग क्रांति चाहते हैं  वे उसे संपन्न करने के साधन, अर्थात राजनीतिक क्रिया के प्रति उदासीन नहीं हो सकते । इस क्रिया से ही क्रांति के लिए जमीन तैयार होती है और मजदूरों को वह क्रांतिकारी प्रशिक्षण प्राप्त होता है , जिसके बिना वे लड़ाई के दूसरे ही दिन फाव्र तथा प्यात जैसे लोगों के धोखे में आए बिना नहीं रह सकते। मगर यह जरूर है कि हमारी राजनीति मजदूर वर्ग की राजनीति होनी चाहिए ; मजदूर पार्टी को किसी पूंजीवादी पार्टी का दुमछल्ला कभी नहीं होना चाहिए ; वह स्वाधीन होनी चाहिए ,उसका अपना लक्ष्य , अपनी नीति होनी चाहिए ।  राजनीतिक स्वातंत्र्य - सभा और संघ स्वातंत्र्य तथा प्रेस स्वातंत्र्य - ये हमारे अस्त्र हैं । जब कोई हमारे इन अस्त्रों को चुरा लेने की कोशिश करता है तब क्या हम चुपचाप हाथ पर हाथ धरे बैठे रहें और राजनीति से विरत रहें ? कहा जाता है कि अगर हम कोई राजनीतिक कार्रवाई करते हैं तो इसका मतलब यह है कि हम मौजूदा वस्तुस्थिति को स्वीकार करते हैं ।परंतु जब तक मौजूदा वस्तुस्थिति हमें उसका प्रतिवाद करने का साधन प्रदान करती है , तब तक इन साधनों को इस्तेमाल करने का मतलब यह नहीं है कि हम मौजूदा वक्त में हावी व्यवस्था को स्वीकार करते हैं ।

पहली बार ' कम्युनिस्ट इंटरनेशनल ' पत्रिका , अंक 29 , 1934 , में प्रकाशित ।

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