अगस्त स्पाइस के बाद 7 अक्तूबर 1886 को शिकागो की अदालत में बोलने की बारी माइकल श्वाब की थी. उनपर आरोप थे कि उन्होंने ही हे मार्केट में हुई 4, मई 1886 की सभा में बम फेंका था जिसमें 7 पुलिस वाले और 4 नागरिक मारे गए थे. पुलिस की पहली रिपोर्ट में था कि उन्होंने कई बम फेंके. बाद में जब पता चला कि वहाँ तो एक ही बम फेंका गया है तब पुलिस ने एफआईआर की तफ्तीश में लिखा, एक बम फेंका गया लेकिन वो माइकल श्वाब ने ही फेंका. (इनमें से किसी ने भी बम नहीं फेंका था, बाद में सिद्ध हो गया).
"मैं कुछ बोलना नहीं चाहता लेकिन चुप रहना कायरता होगी इसलिए बोल रहा हूँ. अदालत में जो चल रहा है वो न्याय का मखौल है...हमने जो किया उसे षडयंत्र कहा जा रहा है. ये षडयंत्र नहीं आन्दोलन है. निशाने पर हम नहीं हैं, निशाने पर मज़दूर आन्दोलन है, समाजवाद है. हर मज़दूर आन्दोलन को आवश्यक रूप से समाजवादी होना चाहिए. हम समाजवाद की, क्रांति की बात कर रहे हैं, आप उसे षडयंत्र बता रहे हैं...ये जो लोग दौलत के पहाड़ इकट्ठे कर रहे हैं, महलों में रहते हैं, ऐश करते हैं, ये सब हमारे उस श्रम की बदौलत है जिसका भुगतान हमें नहीं किया गया. हम जब बाज़ार जाते हैं तो हम बासी गोश्त का छोटा सा टुकड़ा और सड़ी सब्जियां ख़रीद पाते हैं. हम टूटे-उजड़े घरों रहते हैं और बीमारियों से मरते हैं...आप क्या जानते हैं मजदूर कैसे रहता है. मैं जानता हूँ . मैं डिपार्टमेंटल स्टोर के सेलर (सामान रखने की जगह) में रहा हूँ. मैंने मज़दूरों को भूखों मरते देखा है..काम करते-करते थक कर ख़त्म होते देखा है.. हमारे 12-14 साल के बच्चों को भी काम करना पड़ता है..ये सब आप अमीरों के अखबारों में नहीं छपता..आधुनिक मशीनें जो आज की ज़रूरत हैं वे ही हमारे लिए अभिशाप बन रही हैं. जबकि उनकी आवश्यकता है क्योंकि उससे काम आसान हो जाता है और उत्पादन कई गुना बढ़ जाता है... समाजवाद और कम्युनिज्म की जड़ें इस देश में मज़बूत होने की यही वज़ह है..ऐसा मत सोचिए कि इसे विदेशी लाए हैं (दरअसल माइकल श्वाब जर्मनी में पैदा हुए थे और वहाँ समाजवादी आन्दोलन से जुड़े थे), अमेरिका में जन्मे कम्युनिस्टों की तादाद बाहर वालों से कहीं ज्यादा है. समाजवाद से हमारा मतलब है कि ज़मीन और उद्योग पूरे समाज के होंगे और सभी को काम करना होगा. तब सभी को बहुत कम घंटे काम करना ही पर्याप्त होगा...मैं जानता हूँ कि हमारा लक्ष्य आज या कल हांसिल नहीं होने वाला लेकिन आप देखेंगे कि ये ज़रूर पूरा होगा...उस दिन हे मार्केट में बम किसने फेंका मुझे इसकी कोई जानकारी नहीं, ना मुझे हिंसा फ़ैलाने वाले उस षडयंत्र के बारे में कुछ पता है जिसका आप ज़िक्र कर रहे हैं.
माइकल श्वाब
उन्हें भी फांसी की सज़ा हुई थी जिसे बाद में आजीवन कारावास में बदल दिया गया था. दस साल की सज़ा के बाद वे रिहा हुए थे. उसके बाद उन्होंने मज़दूर अधिकारों के लिए काम किया और उनकी मृत्यु 29 जून 1898 को हुई.
मई दिवस जिंदाबाद
शिकागो के अमर शहीदों को लाल सलाम
दुनिया के मज़दूरो एक हो
Satyavir Singh
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