#जय भीम बनाम लाल सलाम !
लाल सलाम मजदूरों के रक्त रंजित कपड़े से बने झंडे का प्रतीक है । 'जय ' सामाजिक समानता का प्रतीक हो ही नहीं सकता है। जय जय कार करने वाले प्रजा होते हैं और जिसका जय किया जाता है वह राजा होता है ।जो लोग भी जय भीम की अवधारणा को बढ़ा रहे हैं वह सामंती तथा ब्राह्मणवादी संस्कृति को अनजाने ही सही पूरी तरह से उस से ग्रसित हैं ।और ऐसे लोग ब्राह्मणवाद से कदापि नहीं संघर्ष कर सकते हैं ।
अंबेडकर प्रजा की जगह पर नागरिक की अवधारणा के लिए संघर्ष कर रहे थे । नागरिक अधिकार संपन्न होता है और वह अपने शासक की तीव्र आलोचना करने की स्वतंत्रता से लैस होता है । जब नागरिक प्रजा बनने की स्थिति में आ जाता है तो फासीवाद का जन्म होता है । उदाहरण के लिए ज्यादा दूर जाने की आवश्यकता नहीं है । हिटलर की प्रजा हो या भारत की वर्तमान सरकार का जय करने वाली हमारी भक्त प्रजा हो , ये फासीवाद को ही मजबूत करते हैं । इसलिए ' जय ' की अवधारणा में लोगों को डूबाने के बजाय उसे निकालने के लिए प्रयास कीजिए .
नरेंद्र कुमार
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