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Saturday, 26 March 2022

28-29 मार्च, 2022 को आहूत देशव्यापी मजदूर हड़ताल को सफल बनाएँ!


पूँजीवाद साम्राज्यवाद मुर्दाबाद ! 


दुनिया के मजदूरो, एक हो!


वैज्ञानिक समाजवाद जिंदाबाद!!


मजदूरी प्रथा का खात्मा हो!!


 28-29 मार्च, 2022 को आहूत देशव्यापी मजदूर हड़ताल को सफल बनाएँ!


साथियो,


श्रम के शोषण पर आधारित वर्तमान पूँजीवादी व्यवस्था में विषमता का आलम यह है कि जहाँ पिछले साल दस अरब से ज्यादा की संपत्ति वाले अति धनियाँ की संख्या में 179 का इजाफा हो गया, वहाँ गरीबों ( 4500रु. मासिक आय वाले) की संख्या में साढ़े 7 करोड़ की वृद्धि हो गई। कोरोना काल के मात्र आठ महीने में ही प्रमुख दस कंपनियों ने अपनी संपत्ति 42 लाख करोड़ रुपए के बराबर बढ़ा ली. जबकि निचली आधी आबादी, यानी मजदूर वर्ग व मेहनतकशों का देश की औसत आय में हिस्सा 1980 ई. के 20 प्रतिशत से भी कम होते-होते 13 प्रतिशत पर पहुँच गया है। ऐसी स्थिति में भी मोदी सरकार लेबर कोड के सहारे चाहती है कि पूँजीपति वर्ग मजदूरों के खून पीने तक ही सीमित न रहे, बल्कि उनकी बोटी-बोटी नोच ले। कहना न होगा कि चारों लेबर कोड के लागू होने पर आजीविका की अनिश्चितता व असुरक्षा बढ़ेगी, निर्माण मजदूरों से संबंधित कल्याण बोर्ड' का खात्मा हो जाएगा, मजदूरों से 12 घंटे तक काम लेना संभव हो सकेगा, मालिकों- ठेकेदारों को बुरी से बुरी शर्तों पर काम लेने व मनमानी करने का कानूनी अधिकार मिल जाएगा लेकिन, मजदूरों के लिए यूनियन बनाने में अड़चनें बढ़ जाएँगी और हड़ताल करने पर दंडित किए जाने की स्थिति बन जाएगी। इस प्रकार मजदूरों की जिंदगी एक गुलाम से भी बदतर हो जाएगी।


पूँजीवादी व्यवस्था और बेकारी की समस्या का चोली-दामन का साथ होता है। श्रम मंत्रालय के नेशनल कैरियर सर्विस पोर्टल पर पिछले अक्टूबर महीने में ही एक करोड़ 10 लाख बेरोजगार पंजीकृत हुए हैं। नवंबर महीने में देश के गाँवों व शहरों में बेरोजगारी दर करीब साढ़े 10 प्रतिशत रही। एन.एस.ओ. के अनुसार वित्तीय वर्ष (2020-21 ) में पिछले साल की तुलना में 25 लाख कम रोजगार प्रदान किए गए। केंद्रीय बजट में मनरेगा के मद में 25 प्रतिशत की कटौती से बेरोजगारी और बढ़ेगी। सरकारी कंपनियों व रेल को पूँजीपतियों के हाथों बेचने से शोषण, छँटनी व बेकारी में बेतहाशा वृद्धि होगी। आवागमन के सबसे बड़े साधन- रेल के निजीकरण से काम की खोज में शहर-दर-शहर भटकते मजदूरों के ही लिए नहीं, आम जनों की यात्रा भी महँगी हो जाएगी।


पूँजीपति वर्ग के शासन के तहत जमाखोरों व कालाबाजारियों की तो चाँदी है, लेकिन मजदूर और व्यापक मेहनतकश जनता त्रस्त है। हल्दी, जीरा, धनिया आदि मसालों के दामों में पिछले दिनों 71 प्रतिशत तक की वृद्धि देखी गई है। कच्चा माल, माल-बिक्री, पूंजी निवेश व मुनाफे के मद्देनजर साम्राज्यवादी देशों द्वारा बाँटी गई दुनिया में रूस ने यूक्रेन के विरूद्ध इस मंसूबे से युद्ध छेड़ दिया है कि वह अमेरिका के पीछे-पीछे न चलकर उसकी बात माने। विश्व पूँजीवादी अर्थव्यवस्था की जंजीर की एक कड़ी होने के चलते भारत भी प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता। भारत के पूँजीपति विभिन्न देशों को गेहूँ, कोयला आदि निर्यात करने के लगातार ऑर्डर ले रहे हैं। निस्संदेह वे तो मालामाल होंगे, लेकिन महेंगी हुई खाद्य सामग्रियों से मेहनतकश जनता का जीवन और कष्टमय हो जाएगा। इतना ही नहीं, युद्ध का हवाला देकर तेल कंपनियों और अधिक महँगे पेट्रोल बेचकर मालामाल होंगी। केंद्रीय बजट में खादय अनुदान उर्वरक अनुदान, रसोई गैस अनुदान एवं छात्रों के लिए ब्याज अनुदान में क्रमश: 28 प्रतिशत 17 प्रतिशत, 10 प्रतिशत व 7 प्रतिशत की कटौती करने के कारण मजदूरों-मेहनतकशों पर आर्थिक बोझ तो बढ़ ही जाएगा. छात्रों के लिए महँगी होती शिक्षा और अप्राप्य होती जाएगी। देश में जन स्वास्थ्य पर सालाना होनेवाले कुल खर्च के 70 प्रतिशत तक लोगों द्वारा ही खर्च करने की बाध्यता के कारण व्यापक मजदूर मेहनतकश आबादी के लिए बीमारी का इलाज कराना बहुत ही मुश्किल है।


समस्याग्रस्त मजदूर मेहनतकश जनता की आवाज उठाने पर घोर प्रतिक्रियावादी भारतीय सरकार द्वारा "हिंदुत्व का जाल फेंकने के साथ-साथ लोगों को परेशान करने के लिए राजद्रोह कानून व यू.ए.पी.ए. के तहत धड़ल्ले से गिरफ्तारियाँ की जाती हैं। गौरतलब है कि वर्ष 2016-20 के बीच 'यू.ए.पी.ए.' के तहत 7243 गिरफ्तारियों में से सिर्फ 212 पर ही दोष सिद्ध हो सका।


ऐसी विकराल होती स्थिति में केंद्रीय ट्रेड यूनियनों ने हड़ताल का जो आह्वान किया है, हमारी यूनियन उसका समर्थन करती हैं। हम तमाम मजदूरों-मेहनतकशों एवं छात्रों से हड़ताल में शामिल होने की अपील करते हैं, ताकि धार्मिक विद्वेष फैलानेवाली, हमारे जीवन को बद से बदतर बनानेवाली, जनपक्षधर बुद्धिजीवियों को यू.ए.पी.ए. के तहत फँसानेवाली फासीवादी भाजपाई सरकार को यह संदेश दिया जा सके कि तुम्हारी मनमानी अब बर्दाश्त से बाहर है।


इस हड़ताल के माध्यम से सरकार से हमारी मुख्य माँगें निम्नलिखित हैं


1. चारों लेबर कोड रद्द करो !


2. न्यूनतम मजदूरी 25,000 रुपए मासिक तय करो! 


3. तमाम बेरोजगारों को न्यूनतम 15,000 रुपए मासिक भत्ता दो !


4. राज्य के खर्चे पर असंगठित क्षेत्र के तमाम मजदूरों के लिए न्यूनतम पेंशन 10,000 रुपए घोषित करो!


5. राज्य के खर्चे पर शिक्षा और पूर्ण इलाज की व्यवस्था करो!


6. हर मजदूर परिवार को राशन कार्ड प्रदान करो !


7. रेल व सरकारी कंपनियों को पूँजीपतियों को बेचना बंद करो! 8. राजद्रोह कानून एवं यू.ए.पी.ए.' रद्द करो ! 


नोट- 28 मार्च को 11:30 बजे तक पटना जंक्शन स्टेशन गोलंबर के पश्चिम में जुटना है और वहाँ से एकजुट होकर डाक बँगला चौराहा जाना है। 


क्रांतिकारी अभिनंदन के साथ


बिहार निर्माण व असंगठित श्रमिक यूनियन 

संपर्क- 9334356085, 9973043956, 9470726481


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