अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर अफ़गानी महिला कवि नादिया अंजुमन (1980–2005) की कुछ कविताएं, जिनकी हत्या उनके पति ने कर दी थी :
1
ये किस लुटेरे ने
तुम्हारे सपनों की
विशुद्ध सोने की मूर्ति को
इस भीषण तूफान में लूट लिया है?
2
कोई हसरत तक नहीं मुंह खोलने की
फिर क्या गाना चाहिये मुझे...?
मैं, जिससे नफ़रत की ज़िन्दगी ने
फ़र्क़ न रहा जिसके गाने और न गाने में।
क्यों करनी चाहिये बात मुझे मिठास के बारे में,
जब अहसास होता है मुझे कड़वाहट का?
आह, आततायी की दावत ने
दस्तक दी मेरे मुंह को।
संगी कोई नहीं ज़िन्दगी में मेरा
तो फिर किसके लिये मीठी हो सकती हूं मैं?
3
मैं नहीं हूं चिनार का कोई नाज़ुक पेड़
कि हिल जाऊंगी कैसी भी हवा से।
मैं एक अफ़गान औरत हूं,
जिसके मायने सिर्फ़
चीत्कार से समझ में आते हैं।
4
कहीं से ले आओ यादें
पारदर्शी पानी की।
विस्मृति की इस नदी में,
मेरी रूह लिथड़ी पड़ी है रेत में।
5
क्या हुआ जो बेटी हूं मैं
कविता और गीतों की
मेरी कविता थी कच्ची
और टूटी-फूटी
मेरी स्वतंत्र टहनी
पहचान न सकी माली के हाथ को
6
प्यार पर सवाल न करना
क्योंकि यह प्रेरणा है
तुम्हारी लेखनी की
मेरे प्रेममय शब्द
ध्यान में रखते हैं मृत्यु को।
7
मेरे हृदय का क्रन्दन
चमकता है किसी सितारे सा
और मेरी उड़ान का पंछी
छू लेता है आसमान को
(अंग्रेज़ी से अनुवाद– राजेश चन्द्र, 08 मार्च, 2019)
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