ये गीत बिहार रत्न से सम्मानित स्वर्गीय भिखारी ठाकुर जी का लिखा हुआ है, जिसे मन्ना डे ने गाया है और इसे भोजपुरी फिल्म "विदेशिया" में लिया गया था। ये विरह का अमर गीत आजतक लोकप्रिय है। भिखारी ठाकुर का जन्म १८ दिसम्बर, १८८७ को बिहार के सारन जिले के कुतुबपुर (दियारा) गाँव में एक नाई परिवार में हुआ था और १० जुलाई, सन १९७१ को चौरासी वर्ष की आयु में उनका निधन हुआ था। वो स्कूल में नहीं पढ़े थे। घर पर ही नाई का अपना पारिवारिक कार्य करते हुए उन्होंने पढ़ना लिखना सीखा था। जनमानस को जागरूक करने वाली उनकी अमर कृतियाँ कैसे रचीं गईं, ये जानकर आप भी उस महान कलाकार के सामने श्रद्धा से अपना सिर झुका देंगे। भिखारी ठाकुर मिटटी के बने मकान में रहते थे। मकान के आगे बनी मड़ई में वो लोगों का बाल काटने और दाढ़ी बनाने का काम करते थे। मड़ई के छप्पर में वो कैंची, कंघी और उस्तरा रखते थे और उसी छप्पर में एक कॉपी और पेन्सिल रखते थे। जब कोई ग्राहक आ जाता था तो बाल दाढ़ी बनाते थे और जब कोई ग्राहक नहीं होता था तो अपनी कालजयी और समाज सुधारक कृत्यों की रचना करने में लग जाते थे। इस महान लोक कलाकार को 'भोजपुरी का शेक्शपीयर' भी कहा जाता है।
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