कश्मीरी पंडित और प्रख्यात लेखक राहुल पंडिता की प्रसिद्ध किताब "Our Moon Has Blood Clots" पर आधारित फ़िल्म "शिकारा" जो 2020 मैं रिलीज़ हुई थी।
इस फ़िल्म में कश्मीरी पंडितों की निर्मम हत्या विस्थापन की पीड़ा वेदना और संघर्ष अंकित किया गया था। इस फ़िल्म का मक़सद कोई राजनैतिक नेरिटिव सेट करके किसी एक विशेष समुदाय के ख़िलाफ़ माहौल खड़ा करना नही था बल्कि फ़िल्म का मक़सद इतिहास में हुवे उस वीभत्स अन्याय को रेखांकित करना था।
इस फ़िल्म में प्रेम था.. एक शिक्षक का संघर्ष था..ख़ुद और ख़ुद के समाज को पुनर्स्थापित करने का। इस फ़िल्म का नायक "पुष्पा" फ़िल्म जैसा हिंसक और आक्रमक नही था.. मिर्जापुर जैसे खूंखार चरित्र नही गढ़े गये थे.. भारत की जनता का फिल्मी स्वाद अब पूरी तरह बदल चुका है शायद इसी लिये ये औसत फ़िल्म साबित हुई।
इस फ़िल्म के आख़िर दृश्य को देखकर लाल कृष्ण आडवाणी जी रो पड़े थे, अब वही दृश्य काटकर फ़िल्म कश्मीर फ़ाइल के प्रमोशन में इस्तेमाल हो रहा है।
विवेक अग्निहोत्री की कश्मीर फाइल और उनका रिचर्स संकुचित और नफ़रत भरा है। उनकी पूरी फ़िल्म में कोई अच्छा मुस्लिम चरित्र नही दिखता ..ना कोई पुरुष, ना स्त्री यहाँ तक कि कोई बच्चा भी नही..जबकि अंतरराष्ट्रीय सोर्स से पता किया जा सकता है कि अनगिनत मुस्लिम नेताओं की भी हत्या कश्मीर में हुई. बहुत सारे मुसलमानों ने कश्मीरी पंडितों की मदद की....बहुत सारे मुसलमानों को भी अपना घर छोड़ना पड़ा कश्मीरी पंडितों के साथ।
बाक़ि कुछ फिल्में एक समुदाय को टारगेट करने और नफ़रत फैलाने से ज्यादा समाज को कुछ नही दे पाती ...समाधान तो दूर की बात है।
— रुचि भारती
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