लिंग पूजा की क़बीलाई टोटेम को शिव पुराण एवं अन्य धार्मिक ग्रंथों में समाहित कर इसे परंपरा से जोड़ दिया गया,जिसे कालक्रम से पूरे देश के हिन्दू समुदाय के बीच प्रतिष्ठापित और प्रचारित-प्रसारित कर धार्मिक संस्थाओं का अभिन्न अंग बना दिया गया है।विशेष अवसरों पर शिव की पूजा शिवरात्रि और महाशिवरात्रि के रूप में मनाया जाता है। लेकिन, शिव पूजा अधिकतर हिन्दुओं में रोजमर्रा की आस्था अभिव्यक्ति का माध्यम हो गया है।
अन्य राज्यों की बात तो मैं नहीं जानता, पर बिहार में इधर करीब बीस सालों में एक अन्य धार्मिक परंपरा " शिव चर्चा " की भी शुरुआत हो गई है, जो अब शहरों से लेकर गांवों तक प्रचारित-प्रसारित कर दिया गया है। आज की तारीख में यह शिवचर्चा उच्च सवर्ण जातियों की अपेक्षा पिछड़ी जातियों के बीच ज्यादा लोकप्रिय होता जा रहा है। मैंने यह देखा है कि इसके माध्यम से भाजपा की पैठ पिछड़ी और अतिपिछड़ी जातियों के बीच गहरा होता जा रहा है।
भारत और भारतीयों को ऐसे देवताओं, मंदिरों और मूर्तियों के माध्यम से जड़ता की जंजीरों में हजारों साल से बांधा गया है, और यह जकड़न अब और भी बढ़ती जा रही है। इन अवतारों, त्रिदेवों, देवताओं, देवियों को मंदिरों में प्रतिष्ठापित कर भारतीय जनमानस को जड़ता की अंधेरी गुफा में ढकेल दिया गया है, जहां से निकलना उनके लिए संभव नहीं है। पत्थरों की पूजा ने अधिकतर भारतीयों को पत्थर जैसा ही ह्रदयहीन बना दिया है।
अकर्मण्यता, पाखंड, कर्मकांड, मूर्तिपूजा,भाग्यवादी और अंधविश्वास के साथ-साथ ही देवपूजा ने भारतीयों को हर तरह के पापकर्म, कुकर्म, दुष्कर्म, अपराध करने का सामाजिक और धार्मिक अनुज्ञप्ति ( लाइसेंस ) भी मिल जाता है। राम राम जपने और मंदिरों में पूजा करने वाले को लोग सामान्यतया अच्छा मनुष्य भी मान लेते हैं, या यह उनके दुष्कर्मों के औचित्य का साधन बन जाता है। मैंने आजतक कभी भी मंदिरों में पूजा-पाठ, भजन-कीर्तन और रतजगा करने वालों को कभी भी और किसी भी तरह के पापकर्म करने में हिचकिचाते नहीं देखा है। वे बड़े आराम से और निश्चिंत होकर कोई भी पापकर्म हंसते हुए कर लेने में सक्षम होते हैं। मूर्तिपूजा पापकर्म करने का नैतिक भय ही उनके मन से खत्म कर देता है।
पूरा भारतीय समाज ऐसे ही तत्त्वों का मकड़जाल है, जिससे बाहर निकलना बहुत ही कम लोगों के लिए संभव है। यह सोचने वाली बात है कि जो व्यक्ति निर्जीव पत्थरों के आगे शरणागत है, वह अपने से ताकतवर मालिक के आगे कितना नतमस्तक होगा। राजसत्ता के आगे जनसत्ता के समर्पण को सुनिश्चित कराने के लिए ही भारत में धार्मिक कर्मकांडों,पाखंडों, देवी-देवताओं की मूर्तियों और मंदिरों का जाल बिछाया गया है।यह जाल भारत के लोगों के लिए दमघोंटू बन गया है। इसलिए जबतक पूरे भारत में बिछे इस जाल को काटा नहीं जाएगा, भारत न भारतीय कभी भी गुलामी से मुक्त नहीं हो सकते।
Ram Ayodhya Singh
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