धर्म और पूंजीवाद
मन्दिरों में आने वाले चढ़ावों से लेकर मन्दिरों के ट्रस्टों और महन्तों की बेहिसाब सम्पत्ति स्पष्ट कर देती है कि ये मन्दिर भारी मुनाफा कमाने वाले किसी उद्योग से कम नहीं हैं।
हमारे देश में ऐसे बहुत से मंदिर हैं जहां टनों सोना है। हमारे भगवान हमेशा ही धन-धान्य से परिपूर्ण रहे हैं।
श्री तिरुपति बालाजी मंदिर का बजट ही सालाना 2,600 करोड़ होता है। यहां 1000 करोड़ हुंडी में चढ़ावे के रूप में आता है। 8,000 करोड़ रुपए तो सिर्फ ब्याज से ही मिल जाते हैं। इसके अलावा भी 600 करोड़ अन्य साधनों से इस मंदिर की कमाई होती है। अलग-अलग बैंकों में इस मंदिर का करीब 3000 किलो सोना जमा है, जबकि मंदिर के पास 1000 करोड़ रुपये की फिक्स्ड डिपॉजिट हैं।
केरल के तिरुवनंतपुरम स्थित पद्मनाभस्वामी मंदिर के पास 1300 टन सोना है।
तमिलनाडु में मदुरै शहर में स्थित मीनाक्षी अम्मन मंदिर में हर साल लगभग 6 करोड़ नकदी और करोड़ों के जेवरात चढ़ाए जाते हैं।
मुंबई स्थित सिद्धिविनायक मंदिर के पास 160 टन सोना जमा है।
शिरडी के साईं बाबा मंदिर के पास 360 किलो सोना है। इस मंदिर की संपत्ति और आय दोनों ही अरबों में है। यहां हर साल लगभग 350 करोड़ का दान आता है।
सोमनाथ मंदिर के पास 35 किलो सोना है। इसकी गिनती 12 ज्योतिर्लिंगों में प्रथम ज्योतिर्लिंग के रूप में होती है। देखे लिंक
https://m.patrika.com/astrology-and-spirituality/how-much-gold-indian-temples-have-2374342/
वैसे ही, महावीर मंदिर ट्रस्ट, पटना के पास अकूत पैसा जमा है,जो श्रद्धालु जनता द्वारा दान स्वरूप इन्हें प्राप्त होता है। इनके सारे पैसे एफडी में जमा है। कोरोना काल मे मुसीबत की मार झेल रहे विशाल आबादी को इन पैसों से ये कितना मदद किये है, किसी को पता नही है।
अब ये रोना रो रहे है कि कोरोना काल मे चढ़ावे के रूप में होने वाली आय में भारी कमी हुई है।
ये पांच अस्पताल चलाते है उसके कर्मचारियों को वेतन देने के पैसे नहीं है, एफडी गिरवी रख लोन लेना पड़ा है।
भारी मुनाफा कमाने वाले ये विराट मन्दिर किसी उद्योग से कम नहीं हैं। अनेक प्रकार के प्रशासनिक और शारीरिक काम करने वाले कर्मचारियों की तो बात छोड़िये, यहां काम करने वाले पुजारी तक वेतनभोगी है।
मार्क्स ने कहा था कि पूँजीवाद अब तक की सबसे गतिमान उत्पादन पद्धति है और यह अपनी छवि के अनुरूप एक विश्व रचना कर डालता है। पूँजीवाद ने धर्म के साथ ऐसा ही किया है। इसने इसे पूँजीवादी धर्म में इस क़दर तब्दील कर दिया है कि धर्म स्वयं एक धन्धा बन गया है। धर्मो के बीच भी भयंकर गला-घोटू प्रतियोगिता है। मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा एवम चर्च के पास इतनी विशाल धन राशि इकट्ठी है कि हम अंदाजा भी नही लगा सकते।
RSS का नया एजेंडा - दलित युवाओं को ट्रेनिंग देकर पंडित बनाने की तैयारी
हजारो साल से जिस मंदिर में दलितों के प्रवेश पर मनाही थी, जिस धर्म ने दलितों , अछूतो को मानवीय गरिमा से वंचित गुलामो से भी बद्त्तर स्थिति में जीने को विवश किया, उस मंदिर में अब दलितों-अछूतो का प्रवेश न केवल सुगम बनाया जा रहा है बल्कि उस मंदिर का उन्हें पंडित बनाया जा रहा है।दलितों को ठगने का आरएसएस का यह नया एजेंडा है।
जिस तरह अन्य उद्द्योग धंधे में पूंजी ने अपने जातिगत पेशा चुनने की बाध्यता खत्म खत्म कर दी है वैसे ही विशाल बड़े-बड़े मंदिरो में भी दलित जातियों के पुजारी बनने की शुरुवात हो चुकी है। अनुसूचित जाति और जनजाति के व्यक्तियों के मंदिरों में जाने और धार्मिक गतिविधियों के अधिकारों से संबंधित एक याचिका पर सुनवाई करते समय उत्तराखंड हाईकोर्ट ने कहा कि योग्यता पूरी करने वाला किसी भी जाति का व्यक्ति मंदिर का पुजारी बन सकता है। (https://m.thewirehindi.com/article/uttarakhand-high-court-says-high-caste-temple-priests-cant-deny-religious-rights-of-lower-castes/50450/amp )
2017 में भारत के दक्षिणी राज्य केरल में सदियों पुरानी परंपरा को तोड़ते हुए छह दलितों को आधिकारिक तौर पर त्रावणकोर देवस्वम बोर्ड का पुजारी नियुक्त किया गया था।
https://www.bbc.com/hindi/india-41543218
ऐसे अनेको उदाहरण आज मिल जायेंगे। ब्राह्मण पुजारी से ज्यादा दलित पुजारी दलितों के विशाल आबादी को धर्म से बांधे रख सकती है, इस लिये विश्व हिंदू परिषद मन्दिरो में दलित पुजारी की नियुक्ति कराने का अभियान छेड़ रखा है और उनका दावा है कि देश में पांच हजार दलितों को पुजारी बनाने के लिये तैयार किया जा रहा है।
वैसे ही, अयोध्या में राम मंदिर के लिए दलित पुजारियों को तैयार किया जा रहा है। विहिप का 'अर्यक पुरोहित विभाग' दलित समुदाय के लोगों को खास तरह की ट्रेनिंग दे रहा है।
पूंजीवाद मंदिर को उद्द्योग, पूजारी को वेतन भोगी मजदूर वैसे ही बना रहा है जैसे आधुनिक पूंजीवादी श्रम विभाजन ने दलितों को अपनी जाति का पेशा चुनने की बाध्यता खत्म कर अपनी मर्जी का पेशा चुनने की आजादी प्रदान कर रहा है। आज जातियां जाति होने के साथ-साथ वर्ग भी है - पूंजीपति या वेतनभोगी मजदूर वर्ग। पूजारी और दलितो का जाति से मजदूर जाति(वर्ग) में यह रूपांतरण उन्हें उस मजदूर वर्ग का अभिन्न हिस्सा बनाता जा रहा है जिनके कांधे पर पूंजी का तख्त बदलने का ऐतिहासिक कार्यभार है।
कृषि कानून और किसानो का उफनता गुस्सा
14. Why Are Farmers Rising Up Against Modi's Farm Laws - CPI ML Liberation
15. Why the CPI(M) opposes the Farm Laws and calls on all Parties to Unitedly Support the Kisan Struggle
16. AIKKMS Unmasked Heinous Motive Behind The Three Anti-Peasant Bills - SUCI (C)
यथार्थ में छपे लेख का लिंक
किसान आंदोलन] बिगुल मंडली के साथ स्पष्ट होते हमारे मतभेदों का सार : यथार्थ (मई 2021)
मार्क्सवादी चिंतक" की अभिनव पैंतरेबाजियां और हमारा जवाब [3] वर्ष2 अंक 1
'द ट्रुथ' में किसान आंदोलन पर छपे लेख :
अंक 8 : [Farmers Protest] Working Class Must Warn Centre: Desist from Using Force
अंक 9 : Proletarian Revolution in India Shall Arrive Riding The Waves of Peasant Unrest
अंक 9 : The Peasant Question in Marxism-Leninism
अंक 10 : The Proletariat And Emancipation Of Farmers
अंक 10 : 71 Days Of Farmers' Movement: Crucial Second Phase
अंक 11 : What The New Apologists Of Corporates Are And How They Fight Against The Revolutionaries [1]
अंक 12 : Apologists Are Just Short Of Saying "Red Salute To Corporates" [2nd Instalment]
वर्ष 2 | अंक 1 : Transformation Of Surplus Value Into Ground Rent And The Question Of MSP: Here Too Our Self-Proclaimed "Marxist Thinker" Looks So Miserable! [3]
'आह्वान' में छपे आलोचना वाले लेख :
4. पीआरसी सीपीआई (एमएल) के नेता महोदय का नया जवाब
17. What is the remunerative prices or Minimum Support Prices (MSP) 17..04.2021
कुुछ पूराने लेेेख, पोस्ट
1) कृषि-सम्बन्धी तीन विधेयक : मेहनतकशों का नज़रिया October 30, 2020
2) 'मजदूर किसान एकता' की दुहाई देने वाले का भंडाफोड़ 25.11.2020
3) खेतिहर मजदुरो के लिये साप्ताहिक अवकाश की मांग 27/11/2020
4) एंगेल्स और आज के नवनरोदवादी और कोमवादी 28/11/2020
5) तीन कृषि विधेयक और मजदूर वर्ग का नजरिया - अभिनव (कीमत 60/-) 29/11/2020
6) लेनिन और मंझोले किसान 18/9/20
7. लेनिन और धनिक किसान 3/12/20
8) कुलको के आंदोलन में भाग लेनेवाले का पोस्टमार्टम 3/12/2020
9) लाभकारी मूल्य और सार्वजनिक वितरण प्रणाली 4/12/2020
10) किसान प्रश्न और 'प्रतिबद्ध' का यु-टर्न 6/12/2020 आह्वान
11) धनी किसान और आढ़तिये 10/12/20
12) खेतिहर मजदूर, गरीब किसान और सूदखोर, आढ़तिए, कुलक 10/12/20
13) धनी किसान संगठन और कम्युनिष्ट10/12/2020 अभिनव
14) किसान आंदोलन का सामाजिक चरित्र - अभिनव अभिनव 14.12.20
15) ललकार प्रतिबद्ध ग्रुप के भाषण की आलोचना- शिवानी 15/12/2020
16) भारत मे किसान प्रश्न पर कैसे राजनैतिक ढंग से विचार नही करना चाहिए- अभिनव 17/12/2020
17) बिहार, लाभकारी मूल्य, एमएसपी मंडी: कुछ गलत धारणाओं का खंडन- अमित कुमार 17/12/2020
18) पीआरसी पर वारुणीका लेख 21/12/2020
19) धनी किसान आंदोलन का पूछ पकड़े क्रांतिकारियों के दुख -सनी सिंह 22/12/2020
20) Mao and Rich Peasants 11 Jan
21) मार्क्सवाद से छोटूरामवाद 30/12/20
22) कुछ छोटी किंतु महत्वपूर्ण बातें-१
किसान आनोलन का वर्ग चरित्र कैसे निर्धारित होता है? 2/01/21
23) कुछ छोटी किंतु महत्वपूर्ण बातें-२
लाभकारी मूल्य और सार्वजनिक वितरण प्रणाली
24) कुछ छोटी किंतु महत्वपूर्ण बातें-३
क्या मौजूदा धनी किसान-कुलक आंदोलन फासीवाद के विरुद्ध है? 6/01/21
25) कुछ छोटी किंतु महत्वपूर्ण बातें-4
क्या सारे किसान में हित और मांगे एक है?
26) कुछ छोटी किंतु महत्वपूर्ण बातें 11 -लाभकारी मूल्य क्या है? मार्क्सवादी व्याख्या 1/4/2021
28. लाभकारी मूल्य, लागत मूल्य, मध्यम किसान और छोटे पैमाने के माल-उत्पादन के बारे में मार्क्सवादी दृष्टिकोण : एक बहस
इस बहस के सभी लेखों को एक साथ पीडीएफ प्रारूप में पढने के लिए यहां लिंक. पर क्लिक करें
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