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Friday, 11 March 2022

जिन्हे नाज है हिंद पर वो कहां है (?)

जरा मुल्क के रहबरो को बुलाओ
- जिन्हे नाज है हिंद पर वो कहां है (?)

ये कूचे ये नीलाम घर दिलकशी के 
ये लुटते हुए कारवाँ ज़िंदगी के 
कहाँ हैं कहाँ हैं मुहाफ़िज़ ख़ुदी के 
सना-ख़्वान-ए-तक़्दीस-ए-मशरिक़ कहाँ हैं 

ये पुर-पेच गलियाँ ये बे-ख़्वाब बाज़ार 
ये गुमनाम राही ये सिक्कों की झंकार 
ये इस्मत के सौदे ये सौदों पे तकरार 
सना-ख़्वान-ए-तक़्दीस-ए-मशरिक़ कहाँ हैं 

तअफ़्फ़ुन से पुर नीम-रौशन ये गलियाँ
ये मसली हुई अध खिली ज़र्द कलियाँ 
ये बिकती हुई खोखली रंग-रलियाँ 
सना-ख़्वान-ए-तक़्दीस-ए-मशरिक़ कहाँ हैं 

वो उजले दरीचों में पायल की छन छन 
तनफ़्फ़ुस की उलझन पे तबले की धन धन
ये बे-रूह कमरों में खाँसी की ठन ठन 
सना-ख़्वान-ए-तक़्दीस-ए-मशरिक़ कहाँ हैं 

ये गूँजे हुए क़हक़हे रास्तों पर 
ये चारों तरफ़ भीड़ सी खिड़कियों पर 
ये आवाज़े खिंचते हुए आँचलों पर 
सना-ख़्वान-ए-तक़्दीस-ए-मशरिक़ कहाँ हैं 

ये फूलों के गजरे ये पीकों के छींटे 
ये बेबाक नज़रें ये गुस्ताख़ फ़िक़रे 
ये ढलके बदन और ये मदक़ूक़ चेहरे 
सना-ख़्वान-ए-तक़्दीस-ए-मशरिक़ कहाँ हैं 

ये भूकी निगाहें हसीनों की जानिब 
ये बढ़ते हुए हाथ सीनों की जानिब 
लपकते हुए पाँव ज़ीनों की जानिब 
सना-ख़्वान-ए-तक़्दीस-ए-मशरिक़ कहाँ हैं 

यहाँ पीर भी आ चुके हैं जवाँ भी 
तनौ-मंद बेटे भी अब्बा मियाँ भी
ये बीवी भी है और बहन भी है माँ भी 
सना-ख़्वान-ए-तक़्दीस-ए-मशरिक़ कहाँ हैं 

मदद चाहती है ये हव्वा की बेटी
यशोधा की हम-जिंस राधा की बेटी 
पयम्बर की उम्मत ज़ुलेख़ा की बेटी 
सना-ख़्वान-ए-तक़्दीस-ए-मशरिक़ कहाँ हैं 

बुलाओ ख़ुदायान-ए-दीं को बुलाओ 
ये कूचे ये गलियाँ ये मंज़र दिखाओ 
सना-ख़्वान-ए-तक़्दीस-ए-मशरिक़ को लाओ 
सना-ख़्वान-ए-तक़्दीस-ए-मशरिक़ कहाँ हैं 

*~ साहिर लुधियानवी ✍️

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