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Tuesday, 8 March 2022

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस (8 मार्च) के मौके पर (लेनिन के साथ क्लारा ज़ेटकिन के साक्षात्कार से)


'बहुत कम पति, यहाँ तक कि सर्वहारा भी, यह नहीं सोचते हैं कि अगर वे इस 'औरतों के काम' में हाथ बंटायें तो वे अपनी पत्नियों का कितना बोझ और चिंताएँ कम कर सकते हैं, या उन्हें पूरी तरह इनसे राहत दे सकते हैं। लेकिन नहीं, यह तो 'पति के विशेषाधिकार और गरिमा' के ख़िलाफ़ चला जायेगा। वह मांग करता है कि उसे आराम और सुविधा चाहिए। स्त्री का घरेलू जीवन एक हज़ार छोटे-छोटे कामों में अपने आपको क़ुर्बान करना होता है। उसके पति, उसके स्वामी और प्रभु, के प्राचीन अधिकार चुपचाप क़ायम रहते हैं। लेकिन वस्तुगत रूप से, उसकी दासी अपना प्रतिशोध ले लेती है। यह भी छिपे रूप में होता है। उसका पिछड़ापन और अपने पति के क्रान्तिकारी आदर्शों की समझ की उसकी कमी पति की जुझारू भावना और लड़ने के उसके हौसले को पीछे खींचती है। क्षुद्र कीड़ों की तरह वे धीरे-धीरे, मगर लगातार कुतर-कुतर कर उसे कमज़ोर बनाते हैं। मैं मज़दूरों के जीवन को जानता हूँ, और सिर्फ़ किताबों से नहीं जानता। स्त्री जनसमुदाय के बीच हमारे कम्युनिस्ट कार्य, और आम तौर पर हमारे राजनीतिक कार्य में पुरुषों के बीच व्यापक शैक्षिक काम करना शामिल है। हमें पार्टी से, और जनसमुदाय से, पुराने दास-स्वामी वाले दृष्टिकोण को जड़ से उखाड़ फेंकना होगा। यह हमारा एक राजनीतिक कार्यभार है।'

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर मेरी एक कविता

चारदिवारी में कैद वो नारी
गेट पर खड़ी होकर 
देखती है बाजार जाती अपने 
काम को करती उस लड़की को
और करती है बातें आपस में
इस लड़की का कोई भाई नही है क्या?
देखती हूं खुद ही जाती है इधर उधर
और फिर वो चारदिवारी की नारी
घर में चूल्हा चौकी करके
बनाती है खाना बच्चो और पति के लिए
करती है साफ सफाई घर की दिन से रात तक
और निकालकर उस बीच फुर्सत
जाती है किसी मंदिर के अंदर
बैठती है गप्पें हांकती है
कौन लड़की कहां जाती है
किसके घर मे कुछ तमाशे हुए
मोहल्ले मे कौन औरत सबसे बदमाश है
या फिर करती हो भगवान की अराधना
झाल बजाकर आरती करके
किसीभव्य पूजा समारोह या यज्ञ मे शामिल हो 
चिल्लाती है माइक मे भगवन् की जय हो
करती हैशिव चर्चा,निरंकारी बाबा की चर्चा
करती है चर्चा किसी न किसी बाबा की
और लौटती है घर व्यस्त हो जाती है चूल्हा चौकी में।
उनसे कुछ ही फासले पर
वह नारी ढो रही है बोझा
हां!ईंटा ढोती,कोयला ढोती,पत्थर तोड़ती 
और देखती है जीवन के असली तस्वीर को
देती है गाली उस नजर को जो
उसकी ओर ताकता है अश्लिलता के साथ
अपने काम से जब फुर्सत निकालकर वह बैठती है
तो करती है चर्चा जीवन कितना कठिन हो चला है
करती है चर्चा समाज मे कैसे कैसे लोग है
करती है चर्चा कौन छीन रहा है हमारे हक
करती है चर्चा मुक्ति की,स्वतंत्रा की
क्योकि परखा है जिंदगी के सच को नजदीक से उसने
और उठाती है अपनी आवाज उस व्यवस्था के खिलाफ
चारदिवारी की नारी जो नहीं समझ रही 
अपने बंदी जीवन को
जो झुलसता है बस चूल्हा चौकी से लेकर
व्यर्थ के चर्चे पर
मगर पत्थर तोड़ती वो मजदूर नारी 
समझती है यह चाल और उठाती है आवाज
वर्तमान व्यवस्था के खिलाफ
वह कर रही है अपने हथौड़े से
उस पुरूषवादी सोच पर प्रहार
पत्थर तोड़ती वह नारी तोड़ रही है अपने दमभर
उस मनुवादी विचार को
जिसने नारी को उलझाने के लिए
महीन जाल बुन रखे हैं
चारदिवारी में कैद नारी 
देखो तुम भी इस सच को
पहचानो अपनी स्थिति 
पिंजड़े में कैद उस तोते सी
जिसे हर वक्त मिल जाते हैं दाने चने के
मगर मिलता नहीं कभी
पंख फड़फड़ाने के लिए खुला आसमान
चारदिवारी की नारी जरुरत है तुम्हें भी
व्यर्थ के जीवन से बाहर निकलकर
अपनी मजदूर साथियों के साथ खड़ी हो जाओ
और पहचान स्वतंत्रता के सही मायने
उठाओ आवाज इस कुव्यवस्थित समाज के विरुद्ध।
.................. इलिका प्रिय


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