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दो से चार दिनों में यूक्रेन पर कब्जा कर लेने और अपनी कठपुतली सरकार स्थापित करने की पुतिन की कल्पना पूरी तरह से ध्वस्त रही। तीन हफ्तों में भी रूसी सेना यूक्रेन पर कब्जा कर पाने से बहुत दूर है, अधिक से अधिक होगा तो कीव पर कब्जा कर सकते हैं, लेकिन जैसी स्थितियां हैं उससे कीव पर कब्जा होना यूक्रेन पर कब्जा होना नहीं रहा है। यूक्रेन की लड़ाई अब यूक्रेन के आम लोग लड़ रहे हैं। पुतिन का अहंकर इतना अधिक तिलमिलाया हुआ है कि पुतिन की सेना शुरुआत के चंद दिनों को छोड़ जानबूझकर नागरिक इलाकों व भवनों पर बमबारी कर रही है। छोटे बच्चों के स्कूलों, अस्पतालों व बमबारी से बचने वाले शेल्टर्स पर बमबारी कर रही है, मिसाइल दाग रही है। बमबारी से बचने के लिए ऐसे शल्टर भी बनाए गए जो स्पष्ट रूप से नागरिक इलाकों के अंदर हैं, सैन्य इलाकों से दूर-दूर तक कोई नाता नहीं। यूक्रेन के अनेक शहरों में आम लोगों को डराने के लिए ताकि आम लोग रूसी सेना का विरोध करना बंद कर दें, आम लोगों का आत्मविश्वास मर जाए, इसलिए नागरिक इलाकों में क्रूरता के साथ मिसाइलें व बम गिराए जा रहे हैं।
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2015 में पुतिन की सेना ने यूक्रेन के कुछ हिस्से कब्जा लिए थे, उन्हीं से लगभग सटा हुआ (2015 में पुतिन सेना द्वारा कब्जाए गए इलाकों से एक-दो तरफ से घिरा हुआ भी कह सकते हैं) एक शहर है — मरियोपल (यूक्रेनी उच्चारण अलग हो सकता है)।
मरियोपल के आम लोगों ने दिनों तक पुतिन की सेना का बहादुरी से सामना किया, कह सकते हैं कि नाकों चने चबवा दिए। तब पुतिन सेना ने बर्बरता की सीमाएं पार करते हुए मरियोपल के नागरिक इलाकों में बम व मिसाइलें गिरानी शुरू कर दीं। हजारों लोगों ने इससे बचने के लिए एक थिएटर में अपना बसेरा बनाया।
पुतिन को इस बात की जानकारी मिली, पुतिन को लगा कि एक बार में ही हजारों निर्दोष नागरिकों की हत्या करके यूक्रेन के आम लोगों के मनोबल को तोड़ा जा सकता है, पुतिन ने अपनी सेना को आदेश दिया कि थिएटर पर भयानक बमबारी की जाए मिसाइलें गिराई जाएं।
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अब आते हैं इस मसले पर पुतिन की धूर्तता पर। हजारों निर्दोष लोगों की हत्या पुतिन कर रहा है, बच्चों के स्कूलों व अस्पतालों पर खतरनाक मिसाइलें व बम गिरा रहा है पुतिन। लेकिन रूस के अंदर मीडिया के द्वारा ऐसा माहौल बना रखा है कि रूसियों को (जो जागरूक हैं वे तो पुतिन का विरोध कर रहे हैं, विरोध करने के कारण जेल भेजे जा रहे हैं, प्रताड़ित किए जा रहे हैं) यह महसूस हो कि यूक्रेन में नाजीवादी सरकार है जो यूक्रेन के आम लोगों को मार रही है और रूस उनको बचाने के लिए कार्यवाई कर रहा है।
पुतिन के इस बर्बर फरेबी एजेंडे में पुतिन भगत लोग तबियत से साथ दे रहे हैं। जैसे भारत में आईटी सेल वाले किसी भी घटना पर एक से बढ़कर एक झूठ फेंक देते हैं, ऐसा माहौल बनाते हैं कि आम लोगों का माइंडसेट ही बदल जाता है, माइंडसेट पूरी तरह से कंट्रोल करने के लिए लगातार एक से बढ़कर एक झूठ फरेब प्रायोजित व प्रतिष्ठित किए रहा जाता है।
तो पुतिन द्वारा पूरी तरह नियंत्रित रूसी मीडिया व पुतिन के भगत व पुतिन की आईटी सेल के लोग मरियोपल के हजारों निर्दोष लोगों की हत्या करने के पुतिन की बर्बरता को रूसी लोगों के माइंडसेट पर यह कहते हुए प्लांट कर रहे हैं कि यूक्रेन की सेना ने यूक्रेन के हजारों आम लोगों को थिएटर में जबरिया घुसेड़ कर आग लगा दी, बम फोड़ दिया यह कर दिया वह कर दिया। नीचता, बेशर्मी, धूर्तता, बर्बरता की कोई भी सीमा नहीं इन लोगों की, ऊपर से कुतर्क ठेलते हैं। इनके लिए बड़ी से बड़ी गाली भी बहुत छोटी है। आत्याचारी हैं, दैत्य हैं।
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जिस तरह से यूक्रेन के लाखों आम लोग अपने स्तर पर रूसी सेना का विरोध कर रहे हैं, यह विरोध इतना प्रबल है कि डायनासोर जैसी विशालकाय पुतिन की सेना को यूक्रेन के आम नागरिकों ने आगे बढ़ने से रोक रखा है।
जिस तरह से यूक्रेन की सरकार पूरी तरह से तहस नहस है। जिस तरह से यूक्रेन के किशोर आयु के बच्चे भी रूसी सेना का विरोध करने के लिए खेलने खाने की आयु में भी आगे आ रहे हैं। ऐसा कतई भी संभव नहीं हो सकता है यदि यूक्रेन की सेना यूक्रेन के आम लोगों के ऊपर आत्याचार करती होती। यदि यूक्रेन का राष्ट्रपति आत्याचारी होता तो यूक्रेन के आम लोग अपने राष्ट्रपति के साथ कंधा से कंधा मिलाकर नहीं खड़े होते।
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ऑस्ट्रेलिया में दुनिया भर के देशों के लोग रहते हैं, यूक्रेन व रूस के लोग भी रहते हैं, हजारों लोग रहते हैं। ऑस्ट्रेलिया में रूस के लोगों की संख्या यूक्रेन के लोगों की संख्या का लगभग दो से तीन गुनी है। सिडनी में रूस व यूक्रेन के पचासों हजार लोग रहते हैं।
ऑस्ट्रेलिया में रहने वाले रूसी व यूक्रेन के लोगों के मित्रों के मित्र निकल आते हैं, जो अपने भी मित्र हैं। ग्राउंड रिपोर्ट इंड़िया का रूस व यूक्रेन के गणमान्य लोगों के साथ एक दशक से भी अधिक पुराना व विश्वसनीय नाता है ही। इसलिए दुनिया में चल रही मीडियाबाजी से इतर जमीनी हकीकतों की मतलब भर की जानकारी मिल ही जाती है।
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सबसे भयानक तथ्य यह है कि य़ूक्रेन में ऐसे लाखों परिवार हैं, जिनके गहरे तार रूस से जुड़े हैं, मतलब पिता या माता या बाबा या दाई या नाना या नानी या भाई या बहन या चाचा या चाची या मामा या मामी या मौसा या मौसी या बुआ या फूफा या बहू या दामाद, रूस में रहते हैं, रूसी हैं।
अचंभे की बात यह है कि यूक्रेन में पुतिन की सेना क्या बर्बरता कर रही है, इसकी जानकारी रूसियों को है ही नहीं। 2012 से इतना अधिक माइंडसेट पर पुतिन प्रचार-तंत्र ने काम किया है कि रूसियों को लगता है कि यूक्रेन की सरकार यूक्रेन के लोगों पर आत्याचार करती है, रूसी सेना बचाने के लिए गई है। माता पिता दादा दादी नाना नानी इत्यादि होकर भी यूक्रेन में रहने वाले अपने नजदीकी परिवार के लोगों की स्थितियों पर विश्वास नहीं कर पा रहे हैं। इतना भयंकर माइंडसेट किया गया है।
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विवेक उमराव
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मैं इस बात को सिरे से खारिज करता हूं कि यूक्रेन का युद्ध जेलेंस्की की जिद या गलती की वजह से शुरू हुआ, इस बात को भी सिरे से खारिज करता हूं कि युद्ध जेलेंस्की की जिद के कारण जारी है या जेलेंस्की राष्ट्रवादी हैं। कई बार कह चुका हूं, फिर कहता हूं कि यूक्रेन नाटो से जुड़ने की ओर बढ़ता या नहीं, पुतिन को यूक्रेन को अपने नियंत्रण में लेने के लिए कोई न कोई बहाना खोजना ही था, नाटो का बहाना सबसे आसान रहा, नाटो का बहाना नहीं होता तो पुतिन कोई और बहाना लेता। युद्ध जारी है तो केवल और केवल पुतिन के इगो व बर्बरता के कारण।
यूक्रेन भले ही रूस की तुलना में बहुत छोटा देश है, भले ही यूक्रेन की सामरिक क्षमता रूस की तुलना में बहुत कमजोर है। फिर भी यदि यूक्रेन के लोग पुतिन का विरोध कर रहे हैं, तो यह यूक्रेन के लोगों के साहस की बात है, यूक्रेन के लोग कायर नहीं हैं, दोगले नहीं हैं, फट्टू नहीं हैं। इस बात की गहराई को वे लोग तो कतई भी नहीं समझ सकते हैं जो थोड़ी थोड़ी समस्याओं से डरकर भागते हैं, धोखा देते हैं, झूठ बोलते हैं, फरेब गढ़ते हैं, कायर हैं।
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यूक्रेन एक स्वतंत्र व संप्रभु देश है, उसे अपने बारे में निर्णय लेने का पूरा अधिकार है। केवल इसलिए कि कोई पड़ोसी देश बड़ा है ताकतवर है, पड़ोसी देश में तानाशाही शासन है, इसलिए यूक्रेन को अपने बारे में निर्णय लेने का अधिकार नहीं है। इस बात को मैं सिरे से खारिज करता हूं।
मैं इसे रूस का फेल्योर मानता हूं कि यूक्रेन जो सोवियत-संघ का प्रमुख जन्मदाता था, को रूस यह विश्वास नहीं दिला पाया कि यूक्रेन को नाटो से नहीं जुड़ना चाहिए। यह रूस का फेल्योर है कि यूक्रेन को ऐसा लगता रहा कि यदि वह नाटो जैसी संगठन से नहीं जुड़ेगा तो उसे रूस से खतरा है। यूक्रेन जो नाटो की सदस्यता को कई बार मना कर चुका था, पुतिन के सत्ता में आने के बाद यूक्रेन को यह लगना कि उसे रूस से खतरा है, यह रूस व पुतिन का फेल्योर है। पुतिन तो कह ही रहा है कि वह यूक्रेन को देश नहीं मानता है, यही बात ही अपने आप में सबूत है कि नाटो तो फर्जी बहाना है, पुतिन यूक्रेन को नियंत्रण में लेने के लिए हमला करता ही।
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भारत में बहुत लोगों को लगता है कि जेलेंस्की तय कर रहे हैं कि यूक्रेन युद्ध करता रहे। नहीं बिलकुल नहीं। यूक्रेन की जो हालत है उसमें यदि आम लोग साथ नहीं हैं तो जेलेंस्की एक दिन भी नहीं टिक सकते हैं। यूक्रेन का युद्ध जेलेंस्की नहीं, यूक्रेन के आम लोग लड़ रहे हैं। जेलेंस्की केवल यूक्रेन के आम लोगों का चेहरा हैं, आत्मा आम लोगों की है। यूक्रेन तो बार बार कह ही रहा है कि यूक्रेन राजनयिक समाधान के लिए तैयार है। लेकिन चूंकि पुतिन का एजेंडा शुरू से ही कुछ और रहा है, इसलिए अहंकार में डूबा यह धूर्त व बर्बर आदमी केवल अपनी कुंठा व अहंकार के लिए यूक्रेन को पूरी तरह से कुचल देना चाहता है।
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जिस तरह से भारत में बहुत लोग मेरी बातों में प्रतिक्रिया देते हैं, जिस तरह से भारत में बहुत लोग यूक्रेन को गलत व पुतिन को सही मानते हैं। उसको देखते हुए मुझे लगता है कि ये लोग यदि पैदा हुए होते जब भारत अंग्रेजो का गुलाम था तब जेल में रहने के डर से, फांसी लगने के डर से, प्रताड़ना झेलने के डर से माफी मांगते रहते अंग्रेजो के तलुवे चाटते रहते, फिर खुद को बहादुर साबित करने के लिए झूठ से भरी किताबें व उपन्यास लिखते रहते।
मैं आप लोगों का नहीं जानता लेकिन मेरे पूर्वज स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे, अंग्रेजो के शासन को नहीं स्वीकारे थे, प्रताड़ना झेले। पेड़ों पर लटका कर मिट्टी का तेल डालकर जलाकर मारे गए। फिर भी साहस नहीं हारे, लड़ते रहे।
मैं यूक्रेन के लोगों के साहस व लड़ाई के साथ हूं। मरना तो एक दिन है ही, केवल खाने हगने मूतने सोने को ही जीवन मानने व असुविधाओं से डरने की कायरता का कोई मायने नहीं। जीवन भले ही कम जिया जाए लेकिन जितना भी जिया जाए उतना साहस के साथ जिया जाए, मूल्यों के आधार पर जिया जाए। जीवन फूहड़ता, नीचता, धिक्कार व कायरता का नाम नहीं है।
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विवेक उमराव
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