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Thursday, 24 March 2022

कवि मंजुल भारद्वाज की झकझोर देने वाली कविता



*हिन्दू जाग गया है !*

बड़ा शोर है 
हिन्दू जाग गया है 
हिन्दू जाग गया है
हिन्दू जाग गया है
पर कोई बता नहीं रहा 
कौन सा हिन्दू जाग गया?
मोहम्मद गौरी को बुलाने वाला 
जयचंद जाग गया 
या 
गाँधी का हत्यारा गोडसे जाग गया?
औरत को पूजने वाला 
हिन्दू जाग गया
या 
जुए में द्रौपदी को दांव पर लगाने वाला 
हिन्दू जाग गया?
वर्णवाद का शिकार हिन्दू जाग गया
ब्राह्मणों का दरबान बना 
राजपूत वाला हिन्दू जाग गया 
ब्राह्मणों का कारोबार सम्भालने वाला 
वैश्य हिन्दू जाग गया 
या 
शुद्र बना हिन्दू जाग गया?
स्वाभिमान,स्वावलंबन,रोजगार छोड़ 
एक एक दाने की भीख लेने वाला 
हिन्दू जाग गया?
एक एक सांस को तरसता 
घर घर मरघट में मरने वाला 
हिन्दू जाग गया?
संविधान से बराबरी का अधिकार 
लेने वाला हिन्दू जाग गया 
या 
संविधान सम्मत वोट से 
मनुवादी सत्ता चुनकर 
वर्णवाद में पिसने वाला 
हिन्दू जाग गया?
बेचारे हिन्दू हिन्दू बोलकर 
मरे जा रहे हैं 
ये नाम इन्हें इस्लाम वालों ने दिया 
मुसलमानों की दी 
हिन्दू की पहचान पर गर्व कर रहे हैं 
और हिन्दू नाम देने वाले 
मुसलमान से नफ़रत कर रहे हैं 
ये कौन से हिन्दू जाग गए है?
दरअसल हिन्दू नहीं जागे 
भीड़ जाग गई है 
अंधी भीड़ 
वर्णवाद की गुलामी से जिसे 
संविधान ने आज़ादी दिलाई थी 
वो भीड़ फिर से वर्णवाद को 
सत्ता पर बिठाने के लिए जाग गई है 
वो भीड़ जाग गई है 
जो ब्राह्मणों के राज में 
वर्णवाद में राजपूत 
वैश्य और शुद्र बनकर 
शोषित होना चाहती है 
जो शोषण को भारत की संस्कृति मानती है 
वो जो ब्राह्मणवाद की पालकी ढ़ोने को 
मोक्ष मानती है 
वो भीड़ जाग गई है 
आर्य प्रसन्न हैं 
मोदी संविधान को नेस्तनाबूद कर 
ब्राह्मणों की सत्ता के दूत बने हैं 
छोटी जाति के एक व्यक्ति के लिए 
इससे बड़ी बात क्या हो सकती है 
जिसे सदियों तक अछूत माना गया 
वो गांधी,आंबेडकर और नेहरु के संविधान से 
देश का प्रधानमन्त्री बन सकता है 
वो हिन्दू जाग गया है 
जो बराबरी नहीं 
ब्राह्मणों की श्रेष्ठता को 
भारत की संस्कृति मानता है 
और 
संविधान सम्मत राज को गुलामी !

~ मंजुल भारद्वाज

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