प्राचीन ग्रीस में लीसिसट्राटा नाम की महिला ने फ्रेंच क्रांति के दौरान युद्ध समाप्ति की मांग रखते हुए इस आंदोलन की शुरूआत की।
फारसी महिलाओं के एक समूह ने वरसेल्स में इस दिन युद्ध की वजह से महिलाओं पर बढ़ते हुए अत्याचार को रोकने हेतु एक मोर्चा निकाला।
आज से ज़्यादा नहीं बस 100+ साल पहले दुनिया के मुश्किल से एक-दो देशों में ही महिलाओं को मतदान देने का अधिकार मिला हुआ था! वो भी बहुत सीमित! यानि उन्हें इतना सक्षम, समझदार और मानसिक तौर पर मेच्योर नहीं माना जाता था कि उन्हें मतदान देने और चुनाव लड़ने के योग्य भी समझा जाए! इंसान नहीं माना जाता था एक तरह से! लेकिन उस समय फैक्ट्रियों में काम के घंटे 14 से लेकर 18 घंटे प्रतिदिन हुआ करते थे जहाँ महिलायें काम तो करती थीं लेकिन पुरुषों से आधी मजदूरी दी जाती थी! इन्हीं तीन मूल माँगों को लेकर 1908 में न्यूयॉर्क में कुछ कामगार महिलाओं ने काम के कम घंटे, मतदान का अधिकार और बेहतर पारिश्रमिक के लिए एक प्रोटेस्ट मार्च निकाला! 1909 में सोशलिस्ट पार्टी ऑफ़ अमरीका ने गारमेंट वर्कर्स की इस हड़ताल को सम्मान देने के लिए इस दिन को पहला राष्ट्रीय महिला दिवस घोषित कर दिया. इन्हीं तीन मूल माँगों को लेकर 1908 में न्यूयॉर्क में कुछ कामगार महिलाओं ने काम के कम घंटे, मतदान का अधिकार और बेहतर पारिश्रमिक के लिए एक प्रोटेस्ट मार्च निकाला! 1910 में कोपेनहेगन में कामकाजी महिलाओं की एक इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस में प्रसिद्ध जर्मन एक्टिविस्ट क्लारा ज़ेटकिन ने अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाने का सुझाव दिया ताकि हर देश में इसी तरह की डिमांड को आगे बढ़ाया जा सके!फलस्वरूप 19.3.1911 को पहला अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस ऑस्ट्रिया, डेनमार्क और जर्मनी में आयोजित किया गया।
1911 में ऑस्ट्रिया, डेनमार्क, जर्मनी और स्विटजरलैंड में लाखों महिलाओं द्वारा मताधिकार, सरकारी कार्यकारिणी में जगह, नौकरी में भेदभाव को खत्म करने जैसे कई मुद्दों की मांग को लेकर रैली निकाली गई और अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया गया।
यूरोप में महिलाओं ने 8 मार्च को पीस ऐक्टिविस्ट्स को सपोर्ट करने के लिए रैलियां की थीं.
1917 में रूस की महिलाओं ने, महिला दिवस पर रोटी और कपड़े के लिये हड़ताल पर जाने का फैसला किया। यह हड़ताल भी ऐतिहासिक थी। ज़ार को सत्ता छोड़नी पड़ी, अन्तरिम सरकार ने महिलाओं को वोट देने का अधिकार दिया।
1913 से हर साल March 8 को ये मनाया जाने लगा! जिसे यूनाइटेड नेशंस ने 1975 में जाकर recognize किया! ये पूरी लड़ाई स्त्री की पहचान हासिल करने की नहीं बल्कि बराबर का इन्सान होने की है! चूँकि हर स्त्री एक कामगार है (भले ही वो इनविज़िबल, अनपेड हो घर की चहारदीवारी के अंदर) इसलिए ये लड़ाई हर महिला की है!
लेकिन कुछ लोग कहते हैं अब बहुत कुछ ठीक हो चुका है तो इसे मनाने की क्या ज़रुरत है? तो सुनो हम आज भी क्यों मनाते हैं इसे-
*क्योंकि आज भी महिलाओं को समान काम का समान वेतन नहीं मिलता. भारत में महिलाओं को पुरुषों की तुलना में एक ही काम के लिए औसतन 40% कम वेतन मिलता है! (NSSO 2017-18)
*काम के घंटे तो ज़रूर कम हो गये हैं लेकिन महिलायें रोज़ 6 घंटे अनपेड काम करती हैं (ऑक्सफेम रिपोर्ट 2020)
*दुनिया के कुल शारीरिक श्रम का लगभग 60% करने के बावजूद महिलाओं के हाथ में दुनिया की मात्र 15% संपत्ति है (ILO)
*भारत के सन्दर्भ में देखें तो महिलायें हर साल क़रीब 19 खरब रूपये के बराबर अनपेड श्रम करती हैं (Oxfam Report, 2020)
*हम आर्थिक विकास तो तेज़ी से कर रहे हैं लेकिन UNDP के जेंडर डेवलपमेंट इंडेक्स (2018) में 166 देशों की सूची में 153वें स्थान पर हैं
*भारत में मुश्किल से 18% महिलायें श्रमबल में हैं (NSSO 2017-18)
*देश की संसद में महज 14% प्रतिनिधित्व है महिलाओं का
*और देश के मात्र 13.8% कम्पनी बोर्ड्स में महिलायें मुखिया हैं
*साक्षरता दर आज भी महिलाओं में पुरुषों से 16.6% कम है
*पिछले 10 सालों में महिलाओं के प्रति अपराध लगभग दो गुना बढ़ चुके हैं (NCRB 2018)
*चाइल्ड सेक्स रेशियो मात्र 919 प्रति हज़ार है जो लगातार घट ही रहा है (2011 जनसंख्या, भारत)
*भारत महिलाओं के लिए सबसे अनसेफ़ देशों में गिना जाता है (थोम्पसन रायटर)
*हर स्पेस बस, मेट्रो, बाज़ार, पार्क, कॉलेज, यूनिवर्सिटी, ऑफिस, सार्वजनिक जगह कहीं भी चले जाओ महिलायें मुश्किल से 15-20% ही संख्या में दिखती हैं!
*यहाँ तक कि जॉब भी जेंडर के हिसाब से मिलते हैं कॉल सेंटर के जॉब, चाय की पत्ती तोड़ने का काम, अटेंडेंट का काम, पर्सनल सेक्रेटरी का काम, प्राइमरी टीचर का काम, नर्स….गिनाते चले जाइए!
*लाखों लड़कियाँ आगे की पढ़ाई सिर्फ इसलिए नहीं कर पातीं क्योंकि रस्ते में छेड़छाड़ और फ़ब्तियाँ कसी जाती हैं
*भारत में 35% महिलायें अपने लाइफटाइम में यौनहिंसा का शिकार होती हैं
*पूरी दुनिया में यौनहिंसा की 98% शिकार आज भी महिलायें होती हैं
*आज भी घरेलू हिंसा हर घर की कहानी है
*आज भी भारत में मैरिटल रेप, रेप नहीं माना जाता है
*आज भी विक्टिम ब्लेमिंग, स्लट शेमिंग की जाती है
*आज भी रेप के बाद लड़की को ही जिंदा लाश कहा जाता है
*आज भी घर से बाहर निकलने पर सैकड़ों पाबंदियां हैं, कर्फ्यू टाइमिंग हैं महिलाओं पर
*आज भी तो जोर हँसने पर, कपड़े पहनने, मोबाइल फ़ोन रखने पर उनके चरित्र पर सवाल उठाया जाता है
*माहवारी पर दर्ज़नों मिथक आज भी बदस्तूर चल रहे हैं
*आज भी देश का प्रतिनिधित्व करने वाले पॉलिटिशियन कुछ भी अंड-बंड बोल जाते हैं (जैसे लड़कों से ग़लतियाँ हो जाती हैं, लड़कियाँ 15-16 साल की उम्र हार्मोनल आउटबर्स्ट के कारण ख़ुद को संभाल नहीं सकतीं, ताली दोनों हाथों से बजती है, रेप इसलिए होते हैं हैं क्योंकि अब लड़कियाँ-लड़के खुलकर इंटरैक्ट करते हैं.....ब्ला..ब्ला..ब्ला)
*महिला ही महिला की सबसे बड़ी दुश्मन होती है, ये बेहूदा शातिराना लाइन आज भी कही जाती है
*साल 2018, BBC जैसी बड़ी न्यूज़ एजेंसी की चाइना एडिटर ने अनइक्वल पे के कारण सार्वजनिक रूप से इस्तीफ़ा दिया था
*आज भी सेक्सुअल हरैस्मेंट के कारण #MeToo कैम्पेन चलाना पड़ता है ऐसे हज़ारों कारणों से इंटरनेशनल वीमेंस डे ज़रूरी है आज भी!
महिला दिवस क्या नहीं है?:
*ये Mother's Day या Valentine's Day नहीं है
"ये गिफ्ट, फूल, फैंसी डिनर, ड्रेस या क्रांतिकारी स्लोगन लिखे टी-शर्ट पहनना नहीं है. बल्कि ये इन्हीं ट्रेंड्स का विरोध है एक हिसाब से!
*ये बाज़ार के द्वारा आज के दिन दिए जा रहे ऑफर, डिस्काउंट, चॉकलेट और कूपन नहीं है
*ये हर चीज़ को पिंक कलर से प्रचार कर देना नहीं है
*और ये कुछ हो या न हो लेकिन पुरुषों का विरोध, उनकी लानत-मलामत तो नहीं है
*महिला दिवस की शुरुआत खून, पसीने और आँसुओं से हुई है! ये रेवोलुशन से पैदा हुआ दिन है इसलिए इसका प्रयोग दुकानों से छूट, डिस्काउंट, गिफ्ट, फ्लावर, चॉकलेट पाने तक सिकोड़ मत दो!
आज के दिन क्या करना चाहिए?:
*आज के दिन कम से इस पर बात होनी चाहिए कि इतिहास में महिलाओं का संघर्ष क्या रहा है?
*कैसे पितृसत्ता ने हज़ारों महीन तरीक़ों से महिलाओं को सेकंड बनाकर रखा है?
*कैसे पितृसत्ता बहुत चालाकी से महिलाओं और पुरुषों दोनों द्वारा आगे बढ़ाई जाती रही है? कैसे इसका विरोध किया जाना चाहिए?
*और कैसे ये स्त्री बनाम पुरुष का मसला नहीं बल्कि महिलाओं के इंसान माने जाने की लड़ाई है?
*आज का दिन इस पर बात करने का है कि कैसे जेंडर भेद अभी समाज में, हमारे आपके घरों में, ऑफिसों में रिश्तों में बना हुआ है!
*आज इस पर बात करने की ज़रुरत है कि लिंगभेद के कारण महिलायें ही नहीं बल्कि पुरुष भी बड़ी कीमत चुकाते हैं
*और कैसे जेंडर ग़ैरबराबरी पूरी जनरेशन की जनरेशन बर्बाद करती है
आप क्या न करें?
*ऐसा कोई व्हाट्सऐप मैसेज फॉरवर्ड न करें जिसमें महिलाओं को वही सेक्सिस्ट और दकियानूसी तरीक़े से गौरवान्वित किया गया हो
आप ऐसे मैसेज न भेजें जिसमें महिला की पहचान सिर्फ़ माँ-बहन-बेटी-पत्नी और प्रेमिका के रूप में करते हुए फ़ालतू का ग्लोरिफिकेशन हो
*ऐसा मैसेज मत भेजो जिसमें स्त्री की महत्ता पुरुषों की सेवा करने पर ही स्थापित की जाती हो
*ऐसा मैसेज जिसमें स्त्री को जॉब, बच्चा सँभालते हुए, घर का काम भी संभालते हुए सुपरवुमन के रूप में ग्लोरीफाई किया गया हो लेकिन उनके ऊपर इस ट्रिपल बर्डन को अनदेखा किया गया हो
*ऐसे मैसेज जिसमें बेमतलब के विशेषण वाली प्रशंसा ठेली गयी हो और अंत में घुमा-फिराकर उनकी सुन्दरता की तारीफ़ की गयी हो!
और आप क्या कर सकते हैं?
*घर में मम्मी बहन पत्नी बेटी का काम में हाथ बंटायें
*उनको संपत्ति में अधिकार दें
*सेक्सिस्ट जोक्स नहीं कहें और न ही उन पर हँसकर उसे बढ़ावा दें
*सभी महिलाविरोधी, सेक्सिस्ट गालियाँ देना बंद कर दें
*उनके कपड़ों, उनके खाने-पीने, उनके घर से बाहर आने-जाने को लेकर पूर्वाग्रह छोड़ें
*आज अपने ही घर की महिलाओं के चौबीसों घंटे-सातों दिन-साल भर घर के अन्दर और बाहर किये जाने वाले अनपेड श्रम को गणना करके तो देखना शुरू करिए! आँखें न खुल जाएँ तो कहना!
*वो तो मजबूत हैं ही लेकिन आप उनको मजबूत कहकर कितना शोषण करते आये हैं इसका अहसास करने की कोशिश करिए
*बैठकर सोचिये कि ममता की मूरत, दया का सागर, त्याग की प्रतिमूर्ति, वात्सल्य और प्रेम के नाम पर उनका कितना शोषण होता आया है घरों में
*सोचिये क्यों नहीं है आपकी मम्मी का कोई पुरुष दोस्त?
*सोचिये आप ख़ुद की ज़िन्दगी कितना जेंडर इक्वलिटी के साथ जीते हैं?
*सोशल मीडिया पर आप कितना जेंडर-सेंसिटिव है? सोचिये
और किसी और को न बदल सकें तो कम से कम खुद की ज़िन्दगी अब से एक बेहतर इन्सान के रूप में जीना शुरू करिए ताकि आने वाले समय में आप ये सवाल फिर न पूछें कि अब क्या ज़रुरत महिला दिवस मनाने की!
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