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Thursday, 17 March 2022

होली




सूर्यकांत त्रिपाठी निराला* - होली मची ठौर-ठौर, सभी बंधन छूटे हैं

फूटे हैं आमों में बौर, भौंर वन-वन टूटे हैं। होली मची ठौर-ठौर, सभी बंधन छूटे हैं।

फागुन के रंग राग, बाग़-वन फाग मचा है, भर गए मोती के झाग, जनों के मन लूटे हैं।

माथे अबीर से लाल, गाल सेंदुर के देखे, आँखें हुई हैं गुलाल, गेरू के ढेले कूटे हैं।

2. *महा कवि नीरज की कविता....*

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करें जब पाँव खुद नर्तन, समझ लेना कि होली है

 हिलोरें ले रहा हो मन, समझ लेना कि होली है

 किसी को याद करते ही अगर बजते सुनाई दें 

 कहीं घुँघरू कहीं कंगन, समझ लेना कि होली है 

 कभी खोलो अचानक , आप अपने घर का दरवाजा 

 खड़े देहरी पे हों साजन, समझ लेना कि होली है 

 तरसती जिसके हों दीदार तक को आपकी आंखें 

 उसे छूने का आये क्षण, समझ लेना कि होली है 

 हमारी ज़िन्दगी यूँ तो है इक काँटों भरा जंगल 

 अगर लगने लगे मधुबन, समझ लेना कि होली है 

 बुलाये जब तुझे वो गीत गा कर ताल पर ढफ की 

 जिसे माना किये दुश्मन, समझ लेना कि होली है 

 अगर महसूस हो तुमको, कभी जब सांस लो 'नीरज' 

 हवाओं में घुला चन्दन, समझ लेना कि होली है

*होली की हार्दिक शुभकामनाएं*

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