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Sunday, 6 March 2022

मारपीट और जबरन 'जय श्री राम'

इस तरह का मारपीट और जबरन 'जय श्री राम' कहने के लिए जो तरीका अपनाया गया एवं अन्य जगहों में भी देखने को मिल जाता है वह बहुत ही निंदनीय,आपत्ति जनक एवं पूर्णतया जनवाद विरोधी क़दम है। हमारे देश के संविधान में धर्मनिरपेक्षता तथा सभी नागरिक को धर्म का समान अधिकार का उल्लेख है, फिर भी एक ईसाई धर्म मानने वाले व्यक्ति के साथ इस तरह का व्यवहार किया जाना क्या संविधान का मज़ाक उड़ाना नहीं है? हिंदू बहुल देश होने का क्या यही पहचान है? हम जानते हैं कि दुनिया के अनेकों देश में यहां के हिंदू बसे हैं , पढ़ते हैंतथा  विभिन्न कार्यों में लिप्त हैं। अगर जवाबी प्रतिक्रिया में वहां के धर्मावलंबी या वहां के नागरिक प्रतिशोधात्मक  व्यवहार करें तो फिर उसका नतीजा क्या होगा, इसका सहज अनुमान लगाया जा सकता है। हिंदू बहुल देश होने के नाते इस तरह के मारपीट और बल प्रयोग का किया जाना सर्वथा अनुचित कदम है तथा ऐसे कृत्य की भर्त्सना पूरे देश के स्तर पर की जानी चाहिए। धर्म का प्रचार जो कोई भी करता है  करें , कोई किसी धर्म को मानता है माने या किसी दूसरे धर्म को अपना कर धर्म परिवर्तन करता है तो करे,या  किसी कोई भी धर्म को न मानना है न माने ,यह प्रत्येक नागरिक का व्यक्तिगत मामला है और यही जनवादी कदम भी है।
               पूंजीपति वर्ग धड़ल्ले से अपनी पूंजी का निवेश दुनियां के किसी भी देश में कर सकता है. मजदूरों का शोषण- दमन कर सकता है, इस पर यहां के धर्मावलंबियों का किसी भी तरह की प्रतिक्रिया कभी भी देखने को नहीं मिलती  है। देशी पूंजी की पक्षधरता करने वाले आज विदेशी निवेश के लिए चारों दिशा के दरवाजे खोल दिए हैं.वास्तविकता तो यह है कि धार्मिक द्वेष फैलाने को ऐसे लोगों को यहां के शासक वर्ग द्वारा ही तरजीह दी जाती है ताकि समाज में समुदायों के बीच विभाजन बना रहे और शासक वर्ग को अपने हिसाब से शासन चलाने में किसी भी तरह विरोध का सामना न करना पड़े। भारत को छोड़कर दुनियां के अन्य  देशों में या तो ईसाई धर्म या इस्लाम या बुद्धिज़्म को मानने वाले लोग रहते हैं। उन देशों के पूंजीपतियों की पूंजी यहां आकर लगे इसके लिए हमारे देश का शासक वर्ग लगातार प्रयत्नशील भी रहता है . उस वक्त धर्म बाधा क्यों नहीं बनता ? दुनियां के पूंजीपतियों के बीच अपनी पूंजी निवेश के मामले में एकता देखने को मिलती है और धर्म के नाम पर उन्माद फैला  हमारी और आम अवाम की एकता एवं भाईचारे में अलगाव पैदा करने की कोशिश की जा रही है.इससे मजदूर वर्ग को सजग एवं सावधान होने की जरुरत है.
                इसलिए आज हमारे देश के बहुसंख्यक आवाम यथा मजदूर वर्ग का दायित्व है कि वह शासक वर्ग के द्वारा धर्म के आधार पर समाज में लोगों के बीच फैलाए जा रहे धार्मिक द्वेष एवं विभाजन करने के प्रयास को उजागर करे। इतना ही नहीं, हमारे देश के प्रबुद्ध एवं जनवादी  लोगों द्वारा भी उसी तत्परता से शासक वर्ग के कुत्सित प्रयास का भंडाफोड़ करने का काम अपने हाथों में लिया जाना चाहिए, यही आज के समय की मांग भी है। 
                    यह सर्वविदित है कि हिंदू समाज का जो कमजोर वर्ग है, उसी समूह के लोग ईसाई या इस्लाम या बौद्ध धर्म में गए हैं जिसका मुख्य कारण यह रहा है कि वैसे समुदाय के लोगों के साथ देश में दोयम दर्जा तथा गैर जनवादी तरीके से असमानता  का व्यवहार हिंदू समुदाय का दबंग वर्ग करता था और आज भी एक दूरी तक करते हुए देखने को मिलता है। कोई कमजोर समुदाय का व्यक्ति अगर मूंछ रख ले तो उसकी पिटाई हो जाती है, कोई घोड़े पर चढ़कर बाजे गाजे के साथ शादी नहीं कर सकता। यह किसी भी प्रबुद्ध नागरिक को मालूम है आम हिंदू के श्मशान घाट पर उन्हें अपने मृतक का दाह संस्कार करने से रोकते भी हैं। ऐसी घटनाओं का जिक्र आज भी देश में सुनने को मिलता रहता है। जबकि वस्तुत: वे लोग भी मजदूर वर्ग के ही हिस्से हैं तथा आज वे अपने जनवादी अधिकारों के लिए  आवाज भी बुलन्द कर भी रहे हैं। आज मजदूर वर्ग का यह दायित्व बनता है कि उनके संघर्षों के साथ कंधे से कंधे मिलाते हुए उनके जनवादी अधिकार को हासिल किया जाए ताकि एक साथ मिलकर सभी तरह के शोषण दमन के खिलाफ संघर्ष को गति प्रदान किया जा सके। इतना ही नहीं आजकल शासक वर्ग के रहनुमा धर्मांतरण के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद कर रहे हैं। वस्तुत: ऐसा कृत्य भी समाज में लोगों के बीच विभाजन का काम करता है। अतः समाज में विभाजन करने वाली शक्तियों से सजग रहते हुए उनका भंडाफोड़ करना आज के समय की मांग है।
RBC

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