एक बात समझ में नहीं आ रही है। उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनावों के नतीजे आने के बाद कुलकवादी ''यथार्थवादी कम्युनिस्टों'' को सनाका क्यों मार गया है? ऐसा लगता है कि बेचारों को सदमा लग गया है! उम्मीद लगाए बैठे थे कि इनका लाडला धनी किसान-कुलक इस बार भाजपा को पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मज़ा चखाएगा! लेकिन कुलकवादी ''यथार्थवादी कम्युनिस्टों'' के लाडले कुलकों ने उन्हीं को मज़ा चखा दिया! बेचारे पहले दो दिन तक ऐसे सदमे में रहे मानो दिमाग़ को लकवा मार गया। अब जब दिमाग की नसें कुछ काम करना शुरू कर रही हैं तो यूक्रेन से लेकर रूस, नाटो, अमेरिका, महँगाई, हर सवाल पर बोल और लिख रहे हैं, लेकिन अपने प्यारे कुलकों के बारे में बेचारों से एक शब्द भी नहीं बोला जा रहा है!
ऐसा क्यों हुआ है, हम आपको बताते हैं: 2017 के विधानसभा चुनावों में पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भाजपा को 37 प्रतिशत जाट आबादी का वोट प्राप्त हुआ था। लेकिन इस बार वे खेती कानूनों और लखीमपुरी हत्याकाण्ड से इतनी बुरी तरह से नाराज़ हुए कि भाजपा को अपना 54 प्रतिशत वोट दे दिया! यहाँँ तक कि लखीमपुर खीरी में भी भाजपा ही सारी सीटें जीत गयी! नतीजे देखकर हमारे कुलकवादी ''यथार्थवादियों'' के पेट में अभी तक तितलियाँँ ही उड़ रहीं हैं।
असल में इनकी एक बात समझ में नहीं आयी थी जो हम और तमाम विवेकवान लोग इनको समझा रहे थे: खेती कानूनों का विवाद शासक वर्ग का आन्तरिक विवाद था; एमएसपी की माँँग ही एक जनविरोधी और खेतिहर पूँजीपति वर्ग की माँग है। इस प्रकार के राजकीय संरक्षण की माँँग हर छोटा-मँझोला पूँजीपति वर्ग उठाता है क्योंकि बाज़ार में बड़ी पूँजी उसे निगलती रहती है (इसका अर्थ हमेशा बरबाद होना नहीं होता!)। लेकिन कुलकों की ही भाषा में कहें तो यह अन्तरविरोध ''चौधरियों'' (यानी शासक वर्ग) का आपसी मसला था। इसका यह अर्थ नहीं था कि जनता के विरुद्ध वे एक नहीं थे। वे ग़रीब किसानों, खेतिहर मज़दूरों और समूचे मज़दूर वर्ग और आम मेहनतकश आबादी के विरुद्ध एक थे और एक ही रहेंगे, चाहे कुलकवादी ''यथार्थवादी'' आने वाली समाजवादी क्रान्ति को उनकी पीठ पर सवार करने की कितनी भी और जो भी कोशिशें कर लें! कई सर्वेक्षणों और वीडियो इण्टरव्यू में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कुलकों ने बाकायदा कैमरे पर कहा कि खेती कानूनों पर भाजपा से अन्तरविरोध तात्कालिक मसला है और वह तो हल हो जायेगा। लेकिन दूरगामी दुश्मन मुसलमान हैं और लेबर को काबू में रखने के वास्ते भी भाजपा का सरकार में आना जरूरी है। यही मुसलमानों और लेबर (अधिकांश दलित) को काबू में और औकात में रख सकते हैं।
जो बात कुलकवादियों व ''यथार्थवादी कम्युनिस्टों'' के समझ में नहीं आयी थी वह यह थी कि यह कुलकों और धनी किसानों का वर्ग चरित्र क्या है। बेचारे कुलकों की ट्रॉली में सवारी में हिचकोले खाने के दौरान अपना वर्ग विश्लेषण ही कहीं गिरा आए, हालाँँकि इन बेचारों को उसका इस्तेमाल करना भी ढंग से कभी आया नहीं था । कुलक व धनी किसान खेतिहर पूँजीपति वर्ग हैं और जनता के विरुद्ध उनका नैसर्गिक याराना औद्योगिक-वित्तीय पूँजीपति वर्ग से ही बनता है, जो कि भारत की पूँजीवादी राज्यसत्ता में प्रमुख शासक ब्लॉक है। उससे चाहे उसके कितने ही आन्तरिक अन्तरविरोध क्यों न हों, वे न तो जनता के पक्ष में आ सकते हैं और न ही आएंगे।
पंजाब में भी कांग्रेस की हार के तमाम कारणों में से एक कारण यह भी था कि एक दलित, एक मज़हबी सिख जटट सिख आबादी के बड़े हिस्से को मुख्यमंत्री के तौर पर स्वीकार नहीं था। ग़ौरतलब है कि इस आबादी का एक विचारणीय हिस्सा धनी किसानों और कुलकों का है। निश्चित तौर पर अन्य कई कारण थे जिनकी वजह से पंजाब में एक दक्षिणपंथी लोकरंजकतावादी पार्टी 'आप' की जीत हुई, जिसमें अकाली-कांग्रेस रोटेशन से लोगों की ऊब और विकल्पहीनता, कांग्रेस की आपसी हास्यास्पद उठापठक और 'आप' द्वारा तथाकथित 'दिल्ली मॉडल' के बारे में पंजाबी मीडिया में किया गया ज़बर्दस्त झूठा प्रचार भी शामिल था। लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं कि एक मज़हबी सिख चन्नी को उम्मीदवार बनाना भी एक अहम कारण था, जिसके कारण कांग्रेस को मात खानी पड़ी क्योंकि अम्बेडकर के प्रतीक का इस्तेमाल कर दलितों के वोट का भी बड़ा हिस्सा 'आप' लेकर गयी। यही कारण था कि नवजोत सिंह सिद्धू को एक प्रतिसन्तुलनकारी कारक के तौर पर कांग्रेस बर्दाश्त कर रही थी, जबकि कांग्रेस की नैया डुबाने में सिद्धू ने कोई कसर नहीं छोड़ी थी!
तो वर्ग विश्लेषण भूलने और कुलकों व धनी किसानों के वर्ग चरित्र को न समझ पाने का नतीजा यह हुआ हमारे कुलकवादी और ''यथार्थवादी कम्युनिस्ट'' कुलक आन्दोलन से आस लगाये, उत्तर प्रदेश में उसके बूते भाजपा की पराजय के आकाश कुसुम की अभिलाषा में हाथ फैलाये हुए थे, और जो हाथ में गिरा वह कौव्वे की टट्टी थी। अब इनके लग्गू-भग्गू इसे
देखकर इनसे कह रहे हैं, ''बॉस! ये तो टट्टी है!''
Abhinav Sinha
No comments:
Post a Comment